
नाज़ी क्रिपो (क्रिमिनल पुलिस)
नाज़ी क्रिपो, या क्रिमिनल पुलिस, नाज़ी जर्मनी की जासूसी फोर्स थी। वे चोरी और हत्या जैसे अपराधों की जांच-पड़ताल करने के लिए जिम्मेदार थे। नाज़ी शासन और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, वे नाज़ी विचारधारा पर आधारित नीतियों का एक प्रमुख प्रवर्तक बन गए। क्रिपो ने यहूदियों और रोमा का उत्पीड़न करने और उनकी हत्या करने में मदद की। जिन लोगों को नाज़ी शासन ने सामाजिक, पेशेवर अपराधियों और समलैंगिकों के रूप में वर्गीकृत किया था, उन लोगों की बड़े पैमाने पर गिरफ़्तारी और यातना कैंप में कैद करने का काम नाज़ी क्रिपो द्वारा ही किया गया था।
मुख्य तथ्य
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नाज़ी क्रिपो नाज़ी शासन से पहले पूरे जर्मनी में मौजूद क्रिमिनल पुलिस संस्थानों से विकसित हुआ था।
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नाज़ी राज्य ने क्रिपो को अपने नस्लीय, सामाजिक और आपराधिक दुश्मनों का सफाया करने और अनिश्चित काल तक यातना कैंप में हिरासत में रखकर उन्मूलन करने की शक्ति दी।
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नाज़ी जर्मनी की सिक्योरिटी पुलिस के हिस्से के रूप में, क्रिपो ने शासन के दमनकारी राजनीतिक पुलिस बल गेस्टापो के साथ मिलकर काम किया।
क्रिमिनल पुलिस (Kriminalpolizei) नाज़ी जर्मनी की जासूसी पुलिस बल था। इन्हें अक्सर क्रिपो के रूप में जाना जाता है, जो "Kriminalpolizei" का संक्षिप्त रूप है। Kriminalpolizei नामक पुलिस बल आज भी जर्मन भाषी दुनिया में आम हैं। अंग्रेजी में, इस प्रकार के पुलिस बल को अक्सर जासूसी बल या आपराधिक जांच विभाग कहा जाता है।
नाज़ियों से पहले
वाइमर जर्मनी में प्रत्येक जर्मन राज्य की अपनी जासूसी सेनाएं थीं। ये क्रिमिनल पुलिस संगठनों ने अत्याधुनिक फोरेंसिक विज्ञान और अपराध विज्ञान का इस्तेमाल करते थे। वैश्विक पुलिस समुदाय में उनका काफी सम्मान था। 1929 की शुरुआत में, महामंदी ने जर्मनी की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन को प्रभावित किया। इससे क्रिमिनल पुलिस के काम पर प्रभाव पड़ा। वाइमर गणराज्य के अंतिम वर्षों में, जासूसों पर काम का बहुत दबाव था। जब उन्होंने नई सामाजिक स्थितियों का जवाब देने का प्रयास किया, तो उन्हें महसूस हुआ कि उनके काम के लिए उन्हें पर्याप्त सराहना नहीं मिल रही है।
इनमें से कुछ जासूसों ने इस चिंता को नाज़ी पार्टी के सामने व्यक्त किया। उन्हें लगा कि नाज़ी उनके पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करने वाली कई सामाजिक और कानूनी समस्याओं को हल कर पाएंगे। नाज़ियों ने आपराधिक गतिविधियों के खिलाफ़ कड़ी कार्रवाई करने का वादा किया। उन्होंने वाइमर आपराधिक न्याय प्रणाली को बहुत कमजोर कहकर खारिज कर दिया। उन्होंने सरकार पर सनसनीखेज अपराध कहानियों के माध्यम से समाचार पत्रों को अपराधियों को मशहूर हस्तियों के रूप में दिखाने का भी आरोप लगाया। बर्लिन के कई जासूसों ने इन पदों को अपना लिया और नाज़ी आंदोलन में सक्रिय हो गए।
नाज़ी अधिग्रहण, 1933

एडॉल्फ हिटलर को 30 जनवरी, 1933 को चांसलर के रूप में नियुक्त किया गया। नई नाज़ी सरकार ने वाइमर संविधान में निहित व्यक्तिगत सुरक्षा को नष्ट कर दिया। इसने पुलिस की शक्तियों का भी विस्तार किया। इसने नाज़ी शासन को क्रिमिनल पुलिस अभ्यास को बदलने की अनुमति दी। 13 नवंबर, 1933 को प्रशिया के एक अध्यादेश ने एक यातना कैंप में "निवारक निरोध" (Vorbeugungshaft) की स्थापना की। यह अध्यादेश तथाकथित पेशेवर अपराधियों पर लागू होता था। अन्य जर्मन राज्यों ने भी ऐसा ही किया। इस डिक्री ने कई क्रिमिनल पुलिसकर्मियों और अपराधविदों की लंबे समय से चली आ रही इच्छाओं को पूरा किया। कानून ने पुलिस को उन व्यक्तियों को तीन बार हिरासत में रखने का अधिकार दिया, जिन्हें पहले से ही पूर्व नियोजित अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था, प्रत्येक सजा कम से कम छह महीने लंबी होगी
प्रारंभ में, निवारक निरोध का उपयोग काफी सीमित था। 1935 के अंत में प्रशिया के यातना कैंपों में 491 कथित पेशेवर अपराधी थे। हालांकि, यह सापेक्ष संयम लंबे समय तक नहीं चला। जैसे-जैसे नाज़ी पुलिस स्टेट का विस्तार हुआ, अपराधियों के प्रति नाज़ी नीति कट्टरपंथी हो गई। और इसी के साथ क्रिपो द्वारा निवारक निरोध का उपयोग भी कट्टरपंथी हो गया।
क्रिपो और गेस्टापो के बीच संबंध
नाज़ी शासन ने SS के लीडर हेनरिक हिमलर के तहत एक मजबूत, केंद्रीकृत पुलिस बल बनाया। हिमलर द्वारा बनाए गए सिस्टम में दो पूरक, सादे कपड़े, खोजी पुलिस बल थे। ये क्रिपो और गेस्टापो थे। जून 1936 में, इन दोनों को सिक्योरिटी पुलिस (Sicherheitspolizei, या सिपो) के रूप में जाना जाने लगा। सिक्योरिटी पुलिस का नेतृत्व हिमलर के डिप्टी रेनहार्ड हेड्रिक कर रहे थे। केंद्रीकरण का एक लक्ष्य इन पुलिस संगठनों को एक-दूसरे से लिंक करना था। अंततः उन्हें SS इंटेलिजेंस सर्विस (Sicherheitsdiesnt, सिक्योरिटी सर्विस, या SD) के साथ मिलाने का इरादा भी था।
1938 की शुरुआत फरवरी में, गेस्टापो और क्रिपो उम्मीदवारों ने पुलिस अकादमियों में एक साथ प्रशिक्षण लिया। इन दोनों संगठनों में अक्सर पुलिसकर्मियों का स्थानांतरण यहाँ से वहाँ होता रहा था। एक आम इंसान के लिए, यह जान पाना कठिन था कि कर्मी एजेंट गेस्टापो का है या क्रिपो का।
सितंबर 1939 में, हिमलर ने आधिकारिक तौर पर क्रिपो, गेस्टापो और SD को एकजुट मिला दिया। यह संयोजन राइक सुरक्षा मुख्य कार्यालय (Reichssicherheitshauptamt, RSHA) के तहत किया गया। RSHA की कमान रेनहार्ड हेड्रिक ने संभाली थी। RSHA में क्रिपो कार्यालय 5 (Amt V) बन गया। जुलाई 1944 तक, क्रिपो आर्थर नेबे के नेतृत्व में था। नेबे लंबे समय से बर्लिन के जासूस और नाज़ी थे।
क्रिपो ने विभिन्न प्रकार के आपराधिक समूहों से निपटने के लिए विशिष्ट टीमें बनाई थीं। ये कॉनर्टिस्ट्स, चोरों, पॉकेट मरने वालों, अफीम के अपराधियों और अंतरराष्ट्रीय यौन तस्करों से संबंधित थे। इनमें से कई कार्यालय नाज़ी काल से पहले बनाए गए थे। हालांकि, कुछ ऐसे कार्यालय भी थे जिनका नाज़ी विचारधारा से स्पष्ट संबंध था। अक्टूबर 1936 में, हिमलर ने समलैंगिकता और गर्भपात के लिए राइक सेंट्रल ऑफिस नामक एक अलग कार्यालय बनाया (Reichszentrale zur Bekämpfung der Homosexualität und der Abtreibung)।
अपराध की एक नाज़ी व्याख्या
नाज़ी विचारधारा के प्रभाव में, क्रिपो ने अपराध की नस्लीय-जैविक व्याख्या का सिद्धांत अपनाया और कार्यान्वयन किया। नाज़ियों ने अपराधियों को आनुवंशिक और नस्लीय रूप से पतित के रूप में देखा। उनका मानना था कि अपराधियों ने जर्मन समाज के नस्लीय स्वास्थ्य को खतरे में डाला है। नाज़ी राज्य और क्रिपो लीडरों के अनुसार, जन समुदाय (Volksgemeinschaft) की सुरक्षा के लिए अपराधियों को समाज से जबरन हटाने की जरूरत थी।
अगस्त 1939 के एक भाषण में, राइक क्रिमिनल पुलिस निदेशक नेबे ने अपराध को "लोगों के शरीर पर एक आवर्ती बीमारी" के रूप में परिभाषित किया। उनके अनुसार, यह बीमारी अपराधियों और "असामाजिक व्यक्तियों" से उनके बच्चों में आनुवंशिक रूप से फैल गई थी। नाज़ी राज्य में, असामाजिक लोग ऐसे लोग थे जो सामाजिक तौर तरीकों के अनुरूप व्यवहार नहीं करते थे। इस श्रेणी में आवारा, भिखारी, वेश्या, दाना, और शराबी के रूप में पहचाने जाने वाले लोग; कार्यशील (arbeitsscheu); और बेघर शामिल थे। इस श्रेणी में रोमा भी शामिल थे। नाज़ी शासन ने रोमा को व्यवहारिक रूप से असामान्य और नस्लीय रूप से हीन माना। अपराध को कुछ समूहों से जुड़ी बीमारी के रूप में परिभाषित करके क्रिपो का करी कट्टरपंथी हो गया।
क्रिपो अभ्यास को कट्टरपंथी बनाना
क्रिपो ने नाज़ी द्वारा दी गई अपराध की व्याख्या को स्वीकार कर लिया था। इसके कई एजेंटों का मानना था कि वे उन लोगों को लक्षित करने के लिए मजबूर हैं जिन्हें वे जैविक, नस्लीय, या आनुवंशिक रूप से आपराधिकता के लिए पूर्वनिर्धारित के रूप में पहचानते हैं। 1937 में, नए फरमानों ने उन्हें ऐसा करने की शक्ति दी। इन फरमानों ने निवारक निरोध के अभ्यास का विस्तार किया। अब क्रिपो उन लोगों को भी यातना कैंप में ला पा रहे थे जिनका कभी भी अपराध से कोई लेना-देना नहीं था। हिरासत में लिए गए लोगों में असामाजिक के रूप में पहचाने गए लोग भी शामिल थे। क्रिपो ने उनके द्वारा किए गए कार्य को यह कह कर उचित ठहराया कि ये लोग और इनकी आने वाली पीढ़ी भविष्य में अपराध कर सकते हैं।
क्रिपो यह अब व्यापक रूप से करने लगे थे। यह प्रयास 1937-1938 में यातना कैंप सिस्टम के विकास में सहायक रहा। 1937 की शुरुआत में, कैंप के कैदियों की संख्या के बड़े प्रतिशत के रूप में क्रिपो द्वारा पेशेवर अपराधियों और असामाजिकों के रूप में गिरफ्तार किए गए लोग शामिल थे। उन्हें अक्सर उनके कैंप बैज रंगों द्वारा संदर्भित किया जाता था, पेशेवर अपराधियों के लिए हरा और असामाजिकों के लिए काला।
1938 के बाद, यातना कैंप के कैदियों को या तो क्रिपो निवारक निरोध या गेस्टापो सुरक्षात्मक हिरासत (Schutzhaft) के तहत हिरासत में लिया गया था। इनमें से कोई भी न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं था। दोनों का उद्देश्य जन समुदाय के नस्लीय, राजनीतिक और सामाजिक अखंडता की रक्षा करना था।
1933 से 1945 के बीच, कृपो ने 70,000 से अधिक लोगों को यातना कैंपों में भेजा। इनमें से कम से कम आधे कैदियों की नाज़ी की क्रूरता और उपेक्षा के परिणामस्वरूप मृत्यु हो गई।
क्रिपो, युद्ध और सामूहिक हत्या
1 सितंबर, 1939 को, नाज़ी जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण करके द्वितीय विश्व युद्ध शुरू किया। इस युद्ध के कारण नाज़ी हिंसा भड़क उठी और अंततः सामूहिक हत्याएं हुईं।
जर्मन सेना के साथ-साथ क्रिपो के पुलिसकर्मी और विभिन्न अन्य प्रकार की पुलिस इकाइयां तैनात की गई। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि सिक्योरिटी पुलिस और SD, जिसमें कृपो अधिकारी शामिल थे, को Einsatzgruppen /इन्सत्ज़ग्रुपपेन में गठित किया गया था। इन्सत्ज़ग्रुपपेन को जर्मन शासन के संभावित दुश्मनों को खोजने और खत्म करने का काम सौंपा गया था। वे प्रमुख स्थानों पर कब्जा करने और दुश्मनों के प्रतिरोध को रोकने के लिए भी जिम्मेदार थे। इसके अलावा, इन्सत्ज़ग्रुपपेन ने सहयोगियों की भर्ती की और खुफिया (इंटेलिजेंस) नेटवर्क की स्थापना की। और अन्य SS और पुलिस इकाइयों के साथ मिलकर, उन्होंने 1939-1940 में हजारों यहूदियों और पोलिश अभिजात वर्ग के हजारों सदस्यों को गोली मार दी।
जून 1941 में शुरू हुए जर्मन-सोवियत युद्ध के दौरान चार इन्सत्ज़ग्रुपपेन तैनात किए गए। क्रिपो के लीडर आर्थर नेबे ने स्वयं इसमें से एक इकाई की कमान संभाली हुई थी। उन्होंने 1941 में जून से नवंबर तक इन्सत्ज़ग्रुपपेन B का नेतृत्व किया। नेबे के कार्यकाल के दौरान, यह घातक इकाई बियालिस्टोक, मिन्स्क और मोगिलेव के आसपास के क्षेत्रों में 45,000 लोगों की सामूहिक हत्याओं के लिए जिम्मेदार थी। इनमें से कई पीड़ित यहूदी थे।
क्रिपो और जहर गैस के साथ प्रयोग
क्रिपो की एक विशेष रूप से महत्वपूर्ण और घातक इकाई सिक्योरिटी पुलिस का आपराधिक तकनीकी संस्थान (Kriminaltechnisches Institut der Sicherheitspolizei, KTI) थी। यह विभाग में विज्ञान और इंजीनियरिंग में प्रशिक्षित फोरेंसिक विशेषज्ञ थे।
KTI के क्रिपो अधिकारियों ने लोगों की बड़े पैमाने पर गैस से हत्या करने की प्रारंभिक विधियां विकसित कीं। अक्टूबर 1939 में, नेबे ने KTI को मानसिक और शारीरिक विकलांग लोगों पर इन विधियों का प्रयोग करके मारने का निर्देश दिया। यह प्रयास इच्छा-मृत्यु प्रोग्राम के सहयोग से किया गया था। KTI के केमिकल इंजीनियर और विष विज्ञान विशेषज्ञ, अल्बर्ट विडमैन ने हत्या के संभावित तरीकों का परीक्षण किया। उन्होंने अंततः कार्बन मोनोऑक्साइड गैस का सुझाव दिया। 1941 के पतन में, विडमैन ने गैस वैन बनाने में मदद की। वैन अपने निकास धुएं से कार्बन मोनोऑक्साइड गैस का उपयोग करते थे। ऑपरेशन रेनहार्ड हत्या केंद्रों के योजनाकारों ने इस विकसित तकनीकों को अपनाया। बेलज़ेक, सोबिबोर और ट्रेब्लिंका में, गैस चेंबरों के लिए कार्बन मोनोऑक्साइड गैस उत्पन्न करने के लिए बड़े मोटर इंजनों का उपयोग किया गया था।
बड़े पैमाने पर गोलीबारी के अलावा, इन्सत्ज़ग्रुपपेन और अन्य SS और पुलिस इकाइयों ने ऐसी गैस वैन का इस्तेमाल किया। नाज़ी के कब्जे वाले पूर्वी यूरोप में यहूदियों और विकलांग लोगों की हत्या करने के लिए वैन का उपयोग एक विधि के रूप में किया गया था।
रोमा का उत्पीड़न और सामूहिक हत्या
क्रिपो रोमा के उत्पीड़न और सामूहिक हत्या के लिए जिम्मेदार था। इस प्रयास से यूरोपीय पुलिस बलों द्वारा इस समुदाय पर निगरानी रखने, उसे परेशान करने और सताने का लंबा इतिहास जारी रहा।
1933 में, क्रिपो और अन्य जर्मन पुलिस ने "जिप्सी" ("Zigeuner") कहे जाने वाले लोगों के विरुद्ध पूर्व- नाज़ी कानूनों को अधिक सख्ती से लागू करना शुरू कर दिया। नाज़ियों ने ऐसे लोगों को नस्लीय रूप से अवांछनीय माना। 1936 में, हिमलर ने क्रिपो के एक भाग के रूप में जिप्सी उपद्रव (Reichszentrale zur Bekämpfung des Zigeunerunwesens) के दमन के लिए राइक केन्द्रीय कार्यालय की स्थापना की। 1930 के दशक में, क्रिपो ने जर्मनी के कुछ हिस्सों में रोमा के लिए कैंप स्थापित और प्रशासित किए। इन शुरुआती "जिप्सी कैंप" ("Zigeunerlager") में से सबसे कुख्यात बर्लिन के पास मरज़ाहन था। युद्ध के दौरान, क्रिपो ने रोमा की नजरबंदी का विस्तार किया। इसके बाद, क्रिपो ने उनके निर्वासन और हत्या को भी अंजाम दिया।
निष्कर्ष
नाज़ी जर्मनी को 1945 में हराया गया था। इसके बाद, कई क्रिपो जासूसों ने नाज़ी और उसके अपराधों से खुद को अलग करने की कोशिश की। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है और गेस्टापो ने सभी अपराध किए हैं। युद्ध के बाद के अपने बयान में, क्रिपो अराजनीतिक बना हुआ था। उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्होंने सामान्य पुलिस कार्य किया था। लेकिन, यह तथ्यों की जानबूझकर गलत बयानी थी। एक संस्थागत और व्यक्तिगत स्तर पर, नाज़ी क्रिपो होलोकॉस्ट सहित तीसरे रैह के अपराधों में गहराई से शामिल था।