Adolf Hitler salutes a passing SS formation at the third Nazi Party Congress in 1927

नाज़ी का सत्ता में आना

नाजी पार्टी, प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी में उभरे अनेक दक्षिणपंथी उग्रवादी राजनीतिक समूहों में से एक पार्टी थी। महामंदी के शुरू होने के साथ ही यह पार्टी तेजी से गुमनामी से राजनीतिक प्रमुखता की ओर बढ़ती गई और जर्मन संसद में साल 1932 में यह सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी।

मुख्य तथ्य

  • 1

    नाजी पार्टी साल 1930 में सत्ता में तेजी से उभरना शुरू हुई थी, जब पार्टी को रैहस्टाग, जर्मनी की संसद में 107 सीटें प्राप्त हुईं थी। जुलाई 1932 में, नाजी पार्टी रैहस्टाग में 230 प्रतिनिधियों के साथ सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई

  • 2

    वाइमर गणराज्य के अंतिम वर्षों (1930 से 1933 तक) में सरकार आपातकालीन आदेश द्वारा शासन करने लगी क्योंकि वहां पर सरकार को संसदीय बहुमत प्राप्त नहीं हुआ था। राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता और यथास्थिति बनाए रखने के प्रति मतदाताओं के असंतोष का सीधा लाभ नाजी पार्टी को मिला।

  • 3

    इसी परिणामस्वरूप, नाज़ियों के व्यापक समर्थन की वजह से 30 जनवरी 1933 को जर्मन के राष्ट्रपति पॉल वॉन हिंडेनबर्ग ने हिटलर को चांसलर पद के लिए नियुक्त किया। जब अगस्त 1934 में हिंडेनबर्ग की मृत्यु होने के बाद, हिटलर ने नाजी तानाशाही का मार्ग प्रशस्त किया।

साल 1929-1930 में जर्मनी में महामंदी की शुरुआत से पहले, नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी (या संक्षेप में नाजी पार्टी) जर्मन राजनीतिक स्पेक्ट्रम के कट्टरपंथी दक्षिणपंथी पार्टियों में से एक छोटी सी पार्टी थी। 2 मई 1928 के दिन हुए Reichstag (संसद) के चुनावों में, नाजी पार्टी को राष्ट्रीय मतों में से केवल 2.6 प्रतिशत मत प्राप्त हुए, जो साल 1924 में 3 प्रतिशत थे, मतों की तुलना में आनुपातिक रूप से गिरावट देखी थी। चुनाव के परिणाम आने पर, जर्मनी की सोशल डेमोक्रेटिक, कैथोलिक सेंटर, जर्मन डेमोक्रेटिक और जर्मन पीपुल्स पार्टियों के एक "ग्रैंड गठबंधन" ने आर्थिक मंदी आने के पहले छह महीनों तक वाइमर जर्मनी पर शासन किया।

साल 1930-1933 के दौरान जर्मनी में माहौल बहुत विकटाकार हो गया था। दुनिया भर में आई हुई आर्थिक मंदी ने देश को बुरी तरह प्रभावित किया था और लाखों लोग बेरोजगार हो गए थे। बेरोजगार लोगों ने और अन्य लाखों लोगों ने मिलकर, महामंदी आने का कारण प्रथम विश्व युद्ध में मिली हार को जर्मनी के राष्ट्रीय अपमान से जोड़ा। कई जर्मन लोगों का मानना था कि संसदीय सरकार का यह गठबंधन कमज़ोर है और यह सरकार आर्थिक संकट को कम नहीं कर पाएगा। पूरे देश में फैली आर्थिक दुर्दशा, भय, और आने वाले समय में और भी बुरे समय की धारणा सोचकर, और साथ ही संकट समय के प्रबंधन में सरकार का स्पष्ट रूप से असफल होने के कारण लोगों के गुस्से और अधीरता ने एडोल्फ हिटलर और उसकी नाजी पार्टी के सत्ता पाने के सपने को एक वजह मिल गई।

हिटलर एक शक्तिशाली और मंत्रमुग्ध करने वाला वक्ता था, जिसने बड़ी संख्या में मतदाताओं के गुस्से और लाचारी का फायदा उठाकर, परिवर्तन लाने के लिए आतुर जर्मन लोगों की एक बड़ी जनसंख्या को अपनी ओर आकर्षित किया। नाजी के चुनावी प्रचार में जर्मनी को महामंदी से बाहर निकालने का वादा किया गया था। नाजियों ने जर्मन सांस्कृतिक मूल्यों को फिर से लाने, वर्साय संधि के प्रावधानों को रद्द करने, कम्युनिस्ट विद्रोह के कथित खतरे को दूर करने, जर्मन लोगों को फिर से काम दिलाने और जर्मनी को विश्व शक्ति के रूप में उसकी "सही पद" पर बहाल करने का वचन दिया। हिटलर और अन्य नाजी प्रचारक जर्मन नागरिकों के क्रोध और भय को यहूदियों के विरुद्ध, मार्क्सवादियों (कम्युनिस्टों और सामाजिक डेमोक्रेटों) के विरुद्ध; और उन लोगों के विरुद्ध निर्देशित करने में अत्यधिक सफल रहे, जिन्हें नाजियों ने नवंबर 1918 के युद्धविराम और वर्साय संधि पर हस्ताक्षर करने और संसदीय गणतंत्र की स्थापना करने के लिए जिम्मेदार ठहराया था। हिटलर और नाज़ी लोगों ने अक्सर युद्धविराम और वर्साय संधि के लिए जिम्मेदार लोगों को "नवंबर अपराधी" का नाम दिया।

हिटलर और अन्य नाजी वक्ताओं ने प्रत्येक श्रोता के लिए अपने भाषण को सावधानीपूर्वक तैयार किया। उदाहरण के लिए, जब वे व्यापारियों से बात करते थे, तब नाजियों ने यहूदी-विरोध को कम महत्व दिया और इसके बजाय साम्यवाद का विरोध और वर्साय संधि के माध्यम से खोई गई जर्मन उपनिवेशों को वापस लाने के वादों पर जोर दिया। जब वे सैनिकों से बात करते थे, तब वे सेवानिवृत्त सैनिकों या अन्य राष्ट्रवादी हित समूहों को संबोधित करते हुए, नाजी प्रचार में सैन्य निर्माण और वर्साय के बाद खोए गए अन्य क्षेत्रों को वापस लेने पर जोर दिया करते थे। नाजी वक्ताओं ने सभी किसानों को आश्वासन दिया कि नाजी सरकार गिरती हुई कृषि कीमतों को सहारा देगी और गिरने नहीं देगी। पूरे जर्मनी में पेंशनधारी लोगों को बताया गया कि उनके मासिक चेक की राशि और खरीदने की शक्ति दोनों स्थिर रहेंगी।

"महागठबंधन" के साझेदारों के बीच गतिरोध को बहाना बनाकर, सेंटर पार्टी के राजनीतिज्ञ और राइक चांसलर हेनरिक ब्रूइंग ने रीच के वृद्ध राष्ट्रपति, प्रथम विश्व युद्ध के फील्ड मार्शल पॉल वॉन हिंडेनबर्ग को जुलाई 1930 में संसद को भंग करने और सितंबर 1930 में नए चुनाव कराने के लिए प्रेरित किया था। इस संसद को समाप्त करने के लिए राष्ट्रपति ने जर्मन संविधान के अनुच्छेद (आर्टिकल) 48 का इस्तेमाल किया। यह अनुच्छेद (आर्टिकल) जर्मन सरकार को संसदीय सहमति के बिना शासन करने की अनुमति देता था और इसे केवल प्रत्यक्ष राष्ट्रीय आपातकाल के मामलों में ही लागू किया जाना था।

आर्थिक मंदी के छह महीने बाद ब्रुइनिंग ने देश के मनोदशा का गलत अनुमान लगाया। नाजी पार्टी को 18.3 प्रतिशत वोट मिले और यह पार्टी देश की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई।

दो वर्षों तक, ब्रुइनिंग सरकार ने, राष्ट्रपति आदेश जारी करने के लिए बार-बार अनुच्छेद 48 का सहारा लेते हुए, संसदीय बहुमत बनाने का प्रयास किया, जिसमें सामाजिक डेमोक्रेट, कम्युनिस्ट और नाज़ियों को शामिल नहीं किया गया था, लेकिन ऐसा करने में वह सफल नहीं हो पाए। 1932 में हिंडेनबर्ग ने ब्रुइनिंग को बर्खास्त कर दिया और पूर्व डिप्लोमैट (राजनयिक) और सेंटर पार्टी के राजनेता फ्रांज वॉन पापेन को चांसलर नियुक्त किया। पापेन ने रैहस्टाग को फिर से भंग कर दिया था, लेकिन जुलाई 1932 में हुए चुनावों में नाजी पार्टी को 37.3 प्रतिशत लोकप्रिय वोट मिले, जिससे वह जर्मनी की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई। कम्युनिस्ट पार्टी (जो तेजी से बिगड़ते आर्थिक माहौल में सोशल डेमोक्रेट्स से वोट ले रहे थे) को 14.3 प्रतिशत वोट मिले। इस परिणामस्वरूप, 1932 के रैहस्टाग में आधे से अधिक प्रतिनिधियों ने सार्वजनिक रूप से संसदीय लोकतंत्र को खत्म करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी।

Adolf Hitler addresses an SA rally, Dortmund, Germany, 1933

एडॉल्फ हिटलर द्वारा एक इस आय रैली को संबोधन। डॉर्टमुंड, जर्मनी, 1933। 

क्रेडिट:
  • US Holocaust Memorial Museum, courtesy of William O. McWorkman

जब पापेन भी सरकार बनाए के लिए संसदीय बहुमत प्राप्त करने में असमर्थ रहे, तब राष्ट्रपति हिंडेनबर्ग के सलाहकारों में से पापेन के विरोधियों ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया। उनके बाद उनके उत्तराधिकारी बने जनरल कर्ट वॉन श्लाइचर ने भी रैहस्टाग को फिर से भंग कर दिया। आने वाले नवंबर 1932 में हुए चुनावों में नाज़ियों को हार का सामना करना पड़ा और उन्हें केवल 33.1 प्रतिशत वोट मिले। लेकिन, कम्युनिस्ट पार्टी को 16.9 प्रतिशत वोट मिले। इसी परिणामस्वरूप, 1932 के अंत तक राष्ट्रपति हिंडेनबर्ग के आसपास के छोटे से समूह को यह विश्वास हो गया था कि जर्मनी में राजनीतिक अराजकता को रोकने के लिए एकमात्र नाजी पार्टी ही अब उम्मीद है, जो आखिरकार कम्युनिस्ट सत्ता को हरा देगी। नाजी वार्ताकारों और प्रचारकों ने इस धारणा को बढ़ाने में पहले ही बहुत योगदान दिया था।

30 जनवरी 1933 को राष्ट्रपति हिंडनबर्ग ने एडॉल्फ हिटलर को जर्मनी के चांसलर पद के लिए नियुक्त किया। हिटलर की चांसलर के रूप में नियुक्ति लोकप्रिय जनादेश के साथ चुनावी जीत के कारण नहीं हुई थी, बल्कि संसदीय शासन पर विश्वास खो चुके रूढ़िवादी जर्मन राजनेताओं के एक छोटे समूह के बीच संवैधानिक रूप से संदिग्ध समझौते के परिणामस्वरूप हिटलर को नियुक्त किया गया था। जनता के दिलों में हिटलर की जो लोकप्रियता थी, वे उसका उपयोग रूढ़िवादी सत्तावादी शासन, यहां तक कि संभवतः राजशाही शासन को वापस लाने के लिए करना चाहते थे। लेकिन, दो वर्षों के भीतर ही हिटलर और नाज़ियों ने जर्मनी के रूढ़िवादी राजनेताओं को मात देकर एक कट्टरपंथी नाजी तानाशाही को मजबूत कर लिया, जो पूरी तरह से हिटलर की व्यक्तिगत इच्छा के अधीन हो गई थी।

Thank you for supporting our work

We would like to thank Crown Family Philanthropies, Abe and Ida Cooper Foundation, the Claims Conference, EVZ, and BMF for supporting the ongoing work to create content and resources for the Holocaust Encyclopedia. View the list of all donors.

शब्दावली