An assembly point (the Umschlagplatz) in the Warsaw ghetto for Jews awaiting deportation. Warsaw, Poland, between 1940 and 1943.

नाज़ियों ने किन समूहों को निशाना बनाया?

नाजी जर्मनी ने नाजी विचारधारा के नाम पर लाखों लोगों पर अत्याचार किया, क्रूरता की और उनकी हत्या की। कुछ मामलों में, वे अपने सहायकों और सहयोगियों की मदद और समर्थन से ऐसा कर पाए।

मुख्य तथ्य

  • 1

    नाजी जर्मनी ने नाजी विचारधारा के नाम पर पूरे समूहों को वहशी बनाया और अवमूल्यन किया। नाजी की विचारधारा नस्लवादी, यहूदी विरोधी और अति-राष्ट्रवादी थी।

  • 2

    नाज़ियों ने यहूदियों को अपना नंबर एक दुश्मन माना। विश्व युद्ध II के दौरान, नाज़ियों और उनके सहायकों और सहयोगियों ने इस नरसंहार में छह मिलियन यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया, जिसे अब होलोकॉस्ट नाम से जाना जाता है।

  • 3

    यूरोप के यहूदियों पर किए नरसंहार के अलावा, नाज़ियों ने ऐसे अतिरिक्त समूह के लोगों को भी निशाना बनाया जिन्हें वे दुश्मन या खतरा मानते थे।

नाजी जर्मनी ने उन समूहों पर अत्याचार किया, क्रूरता की और उनकी हत्या की जिन्हें वे दुश्मन या खतरा मानते थे। नाज़ियों ने यहूदियों को सबसे बड़े दुश्मन के रूप में देखा। उन्होंने आँख बंद करके यहूदी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को निशाना बनाया। इस आतंक का दायरा और मनुष्यों की मृत्यु ये सवाल खड़े करती है: नाज़ियों ने किन समूहों को निशाना बनाया? और उन्होंने इन निर्दिष्ट समूहों के लोगों को ही निशाना क्यों बनाया? 

नाज़ी जर्मनी ने यहूदियों को निशाना बनाया क्योंकि नाज़ी मूल रूप से यहूदी विरोधी थे। शुरुआत से ही, नाजी जर्मन प्रशासन ने जर्मनी में यहूदी लोगों को बड़े ही क्रूर और अथक रूप से अकेला करने, शक्तिहीन करने और उनके खिलाफ भेदभाव करने के लिए कदम लिए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, इस नीति ने आगे चलकर सामूहिक हत्या का रूप ले लिया। नरसंहार में नाजियों, उनके सहायकों और सहयोगियों ने कुल छह मिलियन यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया, जिसे अब होलोकॉस्ट के नाम से जाना जाता है। 

यूरोप के यहूदियों पर किए नरसंहार के अलावा, नाज़ियों ने अन्य अतिरिक्त समूह के लोगों पर भी अत्याचार किया, क्रूरता की और उनकी हत्या की कुछ मामलों में, वे अपने सहायकों और सहयोगियों की मदद से ऐसा कर पाए।

नाज़ियों ने निम्नलिखित समूहों को अपना निशाना बनाया (संदर्भ के लिए क्रमानुसार सूचित)

  • जर्मनी के अश्वेत लोग;
  • नागरिक (गैर-यहूदी) जिनपर अवज्ञा, प्रतिरोध, या पक्षपातपूर्ण गतिविधि का आरोप हो; 
  • जर्मनी के गे/समलैंगिक पुरुष, बाई बाईसेक्शुअल/उभयलिंगी पुरुष और समलैंगिकता के दोषी अन्य पुरुष 
  • यहोवा के साक्षी; 
  • विकलांग लोग; 
  • पोल्स
  • जर्मनी में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी और असंतुष्ट लोग; 
  • रोमा और अन्य लोग जिन्हें अपमानजनक रूप से “जिप्सी” घोषित किया गया। 
  • जर्मनी में सामाजिक बाहरी लोग जिन्हें अपमानजनक रूप से "असामाजिक और "पेशेवर अपराधी" का नाम दिया गया; और 
  • सोवियत युद्धबंदी 

नाज़ियों ने अत्याचार करने और हत्या के लिए लोगों के समूहों को क्यों निशाना बनाया?

Chart of Prisoner Markings

जर्मन जेलखाना कैंप्स में उपयोग किया गया कैदियों के मार्किंग्स का चार्ट डचाऊ, जर्मनी, सीए। 1938-1942।


शुरुआत के 1937–1938 के समय में, एसएस (सुरक्षा स्क्वाड्रन) ने जेलखाना कैंप में कैदियों को चिह्नित करने का सिस्टम बनाया। कैंप्स के बीच कुछ भिन्नताओं के साथ, किसी व्यक्ति को कैद की वजह से उसकी वर्दी पर सिलकर लगाए हुए कलर-कोडित बैज से पहचाना जाता है। नाज़ियों ने इस चार्ट का उपयोग डचाऊ जेलखाना कैंप में कैदियों के चिह्नों को दर्शाने के लिए किया।

क्रेडिट:
  • KZ Gedenkstaette Dachau

नाजी जर्मनी ने नाजी विचारधारा के नाम पर पूरे समूहों को वहशी बनाया और अवमूल्यन किया। विचारधारा मान्यताओं का एक सेट होती है कि दुनिया कैसे काम करती है। नाजी की विचारधारा नस्लवादी, यहूदी विरोधी और अति-राष्ट्रवादी थी। इसका निर्माण कई मौजूदा अवधारणाओं पर आधारित है। इनमें नस्लवाद, राष्ट्रवाद, यहूदी विरोधी भावना, साम्यवाद विरोधी, जिप्सीवाद विरोधी और यूजीनिक्स जैसी अवधारणाएं शामिल थीं। नाज़ियों ने इन सभी अवधारणाओं को मिलाकर विनाशकारी और घटक चरम पर लाया। 

नाज़ियों ने लोगों का जैविक, नस्लीय, राजनीतिक और सामाजिक मानदंडों के आधार पर मूल्यांकन किया। नाजी विचारधारा के अनुसार— यहूदी और रोमा जैसे— समूह के लोग खतरा हैं जिनके कारण जर्मनी के लोगों की नस्लीय शुद्धता कमजोर हो रही है। दूसरे समूह —जैसे विकलांग— लोगों को जैविक खतरा माना जाता था। नाज़ियों का मानना था कि उनके कारण जर्मनी के लोगों के आनुवंशिक स्वास्थ्य के साथ समझौता हो रहा है। और फिर दूसरी ओर देखें तो अन्य कई लोगों को जर्मनी में और उसके भी परे नाजी नियंत्रण के लिए सामाजिक, राजनैतिक, और/या वैचारिक खतरों के रूप में देखा गया। द्वितीय विश्वयुद्ध (1939–1945) के दौरान, नाज़ियों ने यूरोप के ज्यादातर भाग पर जीत हासिल कर ली थी। उन्होंने वास्तविक और कथित दुश्मनों को अस्तित्व के लिए खतरा माना। अस्तित्वगत खतरों के रूप में जिन्हें निशान बनाया गया था उनमें पोलिश अभिजात वर्ग के सदस्य, युद्ध के सोवियत कैदी और प्रतिरोध समूहों के सदस्य थे। युद्ध के दौरान, नाजी जर्मनी ने यूरोपीय यहूदियों पर नरसंहार करने के साथ-साथ और भी कई सामूहिक अत्याचार किए। 

नाज़ियों ने यहूदियों को कैसे निशाना बनाया?

नाजी मौलिक रूप से यहूदी-विरोधी थे, इसलिए नाजी जर्मनी ने लाखों यहूदियों पर अत्याचार किए और उनकी हत्या की। इसका मतलब यह है कि वे यहूदियों के साथ भेदभाव करते थे और उनसे नफरत करते थे। 

उनकी यहूदियों के खिलाफ इतनी ज्यादा नफरत के कारण नाज़ियों ने बेकाबू होकर जर्मनी, और आखिरकार यूरोप को “यहूदियों से मुक्त” (“यहूदी-मुक्त”) करने के लिए कई रास्ते अपनाए। 1933 की शुरुआत में, यहूदियों को जर्मनी के जीवन के सभी पहलुओं से बाहर करने के लिए नाजी जर्मनी प्रशासन ने कई भेदभावपूर्ण कानून पारित किए।

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, यूरोपीय यहूदियों के प्रति अत्याचार को और भी कट्टर किया। उनके कर्म उत्पीड़न से सामूहिक हत्या तक बढ़ गए थे। 1939 में, जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण किया। उसके कुछ ही समय बाद, नाजी जर्मन अधिकारियों ने यहूदियों को यहूदी बस्ती में बंदी बना दिया। बीमारी, भुखमरी और क्रूरता के परिणामस्वरूप कई यहूदी मर गए। 1941 में जब जर्मनी ने सोवियत संघ पर हमला किया था, उसके बाद नाज़ियों और उनके सहायकों और सहयोगियों ने पूर्वी यूरोप में यहूदी समुदाय के कब्जे वाली जगहों पर बड़े पैमाने में गोलीबारी की। 1941–1942 में, नाजी जर्मनी ने जहरीली गैस का उपयोग करके यहूदियों को मारने के लिए हत्या केंद्र बनाए। अपने सहायकों और सहयोगियों की मदद से, उन्होंने हर उम्र के यहूदी को मौत के घाट निर्वासित किया। 

नाज़ियों और उनके सहायकों और सहयोगियों ने कुल साठ लाख यहूदियों की हत्या कर दी। यूरोप के यहूदियों के इस प्रणालीगत उत्पीड़न और हत्या को अब होलोकॉस्ट के नाम से जाना जाता है। यहूदी लोगों को निशाना बनाने और अंततः उनकी हत्या करने पर नाज़ियों की निरंतर प्रतिबद्धता ने नाज़ी जर्मन अत्याचारों के बीच नरसंहार को अद्वितीय बना दिया। 

नाज़ियों ने गैर-यहूदी लोगों के समूह को कैसे निशाना बनाया? 

अन्य समूह के लोगों को नाज़ियों ने अलग, लेकिन अतिव्यापी तरीकों से लक्षित किया। कुछ मामलों में, वे अपने सहायकों और सहयोगियों की मदद से ऐसा कर पाए। 

नाज़ियों ने निम्नलिखित रूप के उत्पीड़न तरीकों के कुछ संयोजन के साथ लोगों के समूहों को निशाना बनाया:

  • जेलखाना कैंप में अतिरिक्त कारावास; 
  • कथित नस्लीय पहचान के आधार पर भेदभाव;
  • अमानवीय चिकित्सा प्रयोगों सहित यातना; 
  • जबरन नसबंदी; और/या 
  • सामूहिक हत्या। 

इन सभी प्रकार के उत्पीड़न और क्रूरता का सामना सभी समूहों को नहीं करना पड़ा। उदाहरण के लिए, नाज़ियों ने कुछ समूहों के साथ भेदभाव किया और गलत कारावास भी किया, लेकिन उनकी सामूहिक हत्या नहीं की। 

नाज़ियों ने इन समूहों को उसी जोर से लक्षित नहीं किया जैसा यहूदी और कुछ और समूहों के साथ किया। नाजी जर्मन प्रशासन के बारह वर्षों में, यहूदी नाज़ियों के लिए सबसे बड़े दुश्मन और सबसे पहला निशाना थे। ऐसे कई समय आए, जब नाज़ियों ने दूसरे समूहों की ओर भी रुख किया। नाज़ी उत्पीड़न का समय और गहनता नाज़ी विचारधारा और व्यावहारिक वास्तविकताओं (जैसे युद्ध) सहित कई उभरते कारकों पर आधारित था। लेकिन, सभी मामलों में, नाज़ियों ने अत्यंत क्रूरता के साथ व्यवहार किया।

सरल संदर्भ के लिए, नाज़ियों द्वारा उत्पीड़ित और/या मारे गए गैर-यहूदी लोगों के समूहों की सूची नीचे क्रमानुसार दी गई है। प्रत्येक अनुभाग में नाज़ियों ने कैसे और क्यों गैर-यहूदी समूह के लोगों को अपना निशाना बनाया इसका परिचय दिया गया है। 

जर्मनी में अश्वेत लोग 

जर्मनी के काले रंग/ब्लैक के लोग नाजी जर्मन प्रशासन का शिकार बने क्योंकि नाज़ियों के अनुसार काला रंग होने का मतलब है कि वे निचली प्रजाति के हैं। जब नाजी 1933 में सत्ता में आए, तब जर्मनी में हजारों की तादाद में काले/ब्लैक लोग रहते थे। नाज़ियों ने काले/ब्लैक लोगों पर नूर्नबर्ग नस्ल कानून लागू किया। उन्होंने अपमानजनक नाम “Neger und ihre Bastarde” ("नीग्रोस एंड देयर बास्टर्ड्स"/"नीग्रो और उनके कमीने") का उपयोग करते हुए काले लोगों का उल्लेख किया। जर्मनी में रहनेवाले इन लक्षित समूह के लोगों में अफ्रीकी, अफ्रीकी अमेरिकी, बहुजातीय लोग और अन्य लोग शामिल थे जिनसे रंग के आधार पर भेदभाव किया गया। इस समूह में कई सैकड़ों बहुजातीय बच्चे शामिल थे जो अंतरयुद्ध युग में जर्मनी के राइनलैंड क्षेत्र में पैदा हुए थे। इन बच्चों की विभिन्न जातीय पृष्ठभूमि (अरब और वियतनामी सहित) थी। हालांकि, इन सभी को काले लोग/ब्लैक नामित किया गया और अपमानजनक शब्द “राइनलैंड कमीने” के रूप में संदर्भित किया गया। 

जहां जर्मनी में काले/ब्लैक लोगों को मारने के लिए कोई केंद्रीयकृत, व्यवस्थित कार्यक्रम तो नहीं बनाया गया था, लेकिन कई ब्लैक लोगों को कैद किया गया, बलपूर्वक नसबंदी और हत्या की गई। इसकी संख्या ज्ञात नहीं है, लेकिन सैकड़ों लोग मारे गए। 

नागरिक (गैर-यहूदी) जिनपर अवज्ञा, प्रतिरोध, या पक्षपातपूर्ण गतिविधि का आरोप हो; 

A 1915 portrait of Willem Arondeus. During World War II, Arondeus, a homosexual member of the Dutch resistance, participated in ...

1915 विलेम अरोनडियस की तस्वीर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, डच प्रतिरोध के एक गे/समलैंगिक सदस्य, अरोनडियस ने एम्स्टर्डम जनसंख्या रजिस्ट्री कार्यालयों पर एक हमले में भाग लिया। उनके समूह ने नाजियों द्वारा मांगे गए यहूदियों और अन्य लोगों के सरकारी रिकॉर्ड को नष्ट करने के प्रयास में कई हजार फाइलों को आग लगा दी। हमले के तुरंत बाद, उनकी यूनिट को धोखा दिया गया। नाज़ियों ने 1943 में अरोनडियस को गिरफ्तार कर लिया और मार डाला। ब्लैरिकम, नीदरलैंड, 1915।

क्रेडिट:
  • US Holocaust Memorial Museum, courtesy of Marco Entrop

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, नाजी जर्मन अधिकारियों ने जर्मन कब्जे के प्रतिरोध को समाप्त करने के नाम पर निर्दोष नागरिकों के साथ बर्बरता की और उनकी हत्या कर दी। पूरे यूरोप में, जर्मनों और उनके सहायकों और सहयोगियों ने प्रतिरोध समूहों के असल और संदिग्ध लोगों को निशाना बनाया। उन्होंने लोगों को गिरफ्तार किया, प्रताड़ित किया, बंदी बनाया, और कई मामलों में उनकी हत्या भी कर दी। जर्मनों ने विदेशी मजबूर मजदूरों के साथ-साथ गैर-जर्मन नागरिकों को भी निशाना बनाया, जिन्होंने जर्मन द्वारा जारी फरमानों, नीतियों या अन्य नियमों का उल्लंघन किया। 

जर्मनों ने सामूहिक दंड भी दिया। अपने सहायकों और सहयोगियों के साथ मिलकर, नरसंहार में उन्होंने निर्दोष नागरिकों को मार डाला। नाज़ियों ने हत्याओं को "प्रतिशोध की कार्रवाई" या "पक्षपातपूर्ण शांति विरोधी उपाय" कहा। इन नरसंहार के दौरान, कभी-कभी तो नाज़ियों ने पूरे गाँव का सफाया कर दिया। अक्सर वे सभी निवासियों की हत्या कर देते थे। इस प्रकार का आतंक कब्जे वाले पूर्वी और दक्षिणी यूरोप में पश्चिमी और मध्य यूरोप की तुलना में कहीं अधिक आम था। कब्जे वाले पोलैंड और सोवियत संघ के कब्जे वाले क्षेत्रों में, नाज़ी विशेष रूप से और भी अंधाधुंध और क्रूर थे। कुल मिलाकर, सैकड़ों-हजारों लोग प्रतिशोधात्मक नरसंहार के शिकार बने। पीड़ितों में बेलारूसी, यूनानी, इटालियन, पोल्स, रूसी, सर्ब, यूक्रेनियन और अन्य शामिल थे। 

गे/समलैंगिक पुरुष, बाईसेक्शुअल/उभयलिंगी पुरुष और होमोसेक्शुअल/समलैंगिकता के दोषी अन्य पुरुष

नाजी जर्मन शासन ने पुरुष होमोसेक्शुअल/समलैंगिकता के खिलाफ अपने अभियान के तहत गे/समलैंगिक पुरुषों, बाईसेक्शुअल/उभयलिंगी पुरुषों और अन्य पुरुषों पर अत्याचार किया। नाज़ियों ने गे/समलैंगिक पुरुषों को जन्म दर और इस प्रकार जर्मन लोगों के भाग्य के लिए खतरा माना। उन्होंने अनुच्छेद 175 के तहत दसों-हजारों लोगों को गिरफ्तार किया। अनुच्छेद 175 जर्मन आपराधिक संहिता का क़ानून था जिसके तहत पुरुषों के बीच यौन संबंधों पर प्रतिबंध था। जर्मनी में महिलाओं के बीच यौन संबंधों पर रोक लगाने वाला कोई समान कानून नहीं था। इसके बावजूद, नाज़ियों ने कई लेसबियन्स के लिए प्रतिबंध और भय का माहौल बनाया। 

5,000 से 15,000 पुरुषों को जेलखाना कैंप में “समलैंगिक/होमोसेक्शुअल” (”homosexuell") अपराधियों के रूप में कैद किया गया था। समलैंगिकता के आरोपी कुछ पुरुषों को जबरन बधिया कर दिया गया। कैदी वर्गीकरण प्रणाली के हिस्से के रूप में ऐसे कैदियों के समूह के लिए आमतौर पर अपने कैंप की वर्दी पर गुलाबी त्रिकोण पहनना आवश्यक था। सैकड़ों, या संभवतः हजारों मारे गए। 

यहोवा के साक्षी 

यहोवा के साक्षियों ने अपनी धार्मिक मान्यताओं को छोड़ने और नाज़ी जर्मन शासन की सेवा करने से इनकार कर दिया इसलिए नाज़ी जर्मनी ने उनपर अत्याचार किया। यहोवा के साक्षियों ने नाज़ी सलामी देने, नाज़ी पार्टी संगठनों में शामिल होने, एडॉल्फ हिटलर को शपथ लेने या अपने बच्चों को हिटलर यूथ में शामिल होने से मना कर दिया। शांतिवादियों के रूप में, उन्होंने जर्मन सेना में सेवा करने से भी इनकार कर दिया। 

जर्मनी में, नाज़ियों ने कई यहोवा के साक्षियों की गतिविधियों और प्रकाशनों पर प्रतिबंध लगा दिया। अधिकारी कभी-कभी साक्षियों के बच्चों को उनके परिवारों से ले लेते थे और उन्हें पालक देखभाल में रख देते थे। कर्तव्यनिष्ठ आपत्तिकर्ता के रूप में सैन्य सेवा से इनकार करने वाले कई पुरुष साक्षियों को मार डाला गया। जर्मनी और कब्जे वाले यूरोप के हजारों यहोवा के साक्षियों को जेलखाना कैंप्स में बंदी बनाया गया इसलिए क्योंकि उन्होंने नाज़ियों की मांगों का को माने से इनकार कर दिया था। कैंप में, यहोवा के साक्षियों को बैंगनी/पर्पल बैज पहनना पड़ता था। करीब 1700 यहोवा के साक्षी नाजी के दौर में मारे गए। 

विकलांग लोग

नाजी जर्मनी ने विकलांग लोगों का उत्पीड़न किया और उनकी हत्या कर दी क्योंकि वे विकलांगों को जैविक हीन मानते थे। इन कथित वंशानुगत खतरों को खत्म करने के लिए, नाजी जर्मन प्रशासन ने यूजीनिक्स का एक कट्टरपंथी रूप लागू किया। 1933 में, नाजी जर्मनी ने वंशानुगत स्वास्थ्य कानून लागू किया। जो भी व्यक्ति कथित वंशानुगत विकलांगता से प्रभावित था इस कानून के परिणामस्वरूप उनकी जबरन नसबंदी कराई गई। यह संख्या कुछ 400,000 बताई जाती है। 

1939 में, नाजी जर्मन प्रशासन ने कुछ विकलांगताओं के साथ पैदा हुए बच्चों को मारना शुरू कर दिया। इसके कुछही समय बाद, अधिकारी संस्थानों और देखभाल सुविधाओं में रहनेवाले विकलांग वयस्कों को मारने लगे। इच्छामृत्यु कार्यक्रम (codenamed Aktion T-4) के हिस्से के रूप में जर्मन के डॉक्टरों और नर्सों ने इस हत्या के काम को अंजाम दिया। अधिकारियों ने इच्छामृत्यु कार्यक्रम हत्या केंद्रों में गैस चैंबरों में हजारों विकलांग लोगों को मार डाला। कभी-कभी लोगों को दवा की घातक खुराक देकर या भूखा रखकर मार दिया गया। जर्मनी यूनिट्स ने कब्जे वाले पूर्वी यूरोप में भी विकलांग लोगों को गोली मार कर हत्या की। कुल 250,000–300,000 विकलांग मारे गए। 

पोल्स

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, नाजी जर्मन ने जर्मन पोल्स के साथ बर्बरता की और उनकी हत्या कर दी। उन्होंने ऐसा इसलिए किया, उनके अनुसार पोलैंड और पोलिश लोग उनके विस्तारीकरण लक्ष्यों के लिए खतरा थे। वे पोलिश लोगों को “अमानव” (Untermenschen) के रूप में देखते थे, जो केवल जर्मनों के गुलाम बनने के लायक थे।

1939 की शुरुआत में, नाज़ियों ने पोलिश क्षेत्र पर अपना कब्जा जमा लिया। वे इसके अधिकतर भाग को जर्मनी के लोगों के लिए “रहने की जगह” (Lebensraum) बनाने की योजना कर रहे थे। कब्जे के पोलैंड में जर्मन अधिकारियों ने जातीय सफाई करने को अंजाम दिया। उन्होंने पोलिश के लोगों, स्थानों और क्षेत्रों का जर्मनीकरण करने का प्रयास किया। जर्मन अधिकारियों ने पोलिश शिक्षित अभिजात वर्ग के खिलाफ विशेष हत्या अभियान चलाया। इस अभियान में उन्होंने दसों-हजारों लोगों को बंदी बनाया और गोली मारकर हत्या कर दी। इन पड़ितों में पोलिश शिक्षक, विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, पादरी, राजनेता और भी बहुत से लोग शामिल थे। 

जर्मन अधिकारियों ने पोल्स को अपने घरों से जबरन विस्थापित भी किया। उन्होंने पोल्स के लोगों की जमीन और संपत्ति चुरा ली। जर्मनीकरण के लिए उन्होंने दसों-हजारों पोलिश बच्चों का अपहरण किया। जर्मन अधिकारियों ने जबरन श्रम के लिए पोल्स का शोषण किया। और किसी भी प्रकायर से पोलिश द्वारा विरोध पर उन्होंने जवाब के रूप में कठोर कदम लिए। उदाहरण के लिए, उन्होंने कथित पक्षपातपूर्ण गतिविधियों के लिए प्रतिशोध के रूप में पूरे पोलिश गांवों का सफाया कर दिया। उन्होंने राजनैतिक कैदियों के रूप में जेलखाना कैंप में भी दसों-हजारों लोगों को गिरफ्तार किया और बंदी बनाया। कुल, जर्मनी लोगों के द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध में या करीब 1.8 मिलियन लोग मारे गए। 

जर्मनी में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी और असंतुष्ट लोग

जर्मन राजनीतिक विरोधियों और असंतुष्टों जिन्होंने नाजी पार्टी या नाजी प्रशासन के प्रति विरोध व्यक्त किया उनपर नाजी जर्मनी ने अत्याचार किया। सत्ता में आने के तुरंत बाद, नाज़ियों ने जर्मन लोकतंत्र पर हमला किया। उन्होंने विरोधी राजनीतिक दलों के हजारों नेताओं को तेजी से गिरफ्तार किया और उनके साथ दुर्व्यवहार किया। विशेष रूप से, उन्होंने कम्युनिस्टों और सोशल डेमोक्रेट्स को निशाना बनाया। नाज़ियों ने जर्मनी को स्वतंत्र रूप से बोलने वाले और स्वतंत्र प्रेस वाले लोकतंत्र से एक तानाशाही शासन में बदल दिया, जिसने सभी रूपों में असहमति पर प्रतिबंध लगा दिया। कई जर्मनों ने इस परिवर्तन का समर्थन किया और शासन को अपनाया। लेकिन जर्मनों के एक छोटे से अल्पसंख्यक वर्ग ने नैतिक, धार्मिक, राजनीतिक या अन्य कारणों से विरोध व्यक्त करना चुना। 

जर्मनी के जिन भी लोगों ने नाज़ियों के खिलाफ आवाज उठाई उन्हें दंडित किया गया। कई लोगों को राजनीतिक कैदियों के रूप में जेलखाना कैंप में कैद किया गया था, जहां उन्हें अपने कैंप की वर्दी पर लाल बैज पहनना पड़ता था। प्रशासन ने मोटे तौर पर परिभाषित किया कि देशद्रोह या देशद्रोही गतिविधियाँ क्या हैं। उदाहरण के लिए, एडॉल्फ हिटलर के बारे में कोई भी मजाक करना गिरफ्तारी और यहाँ तक कि फाँसी का आधार भी हो सकता है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, सक्रिय प्रतिरोध में शामिल पाए गए जर्मनों को अक्सर मार दिया गया था। दसों-हजारों जर्मन राजनीतिक विरोधी और असहमत लोग मारे गये। 

रोमा और अन्य लोग जिन्हें अपमानजनक रूप से “जिप्सी” घोषित किया गया।

नाज़ी जर्मनी और उनके सहायकों और सहयोगियों ने रोमानी लोगों पर अत्याचार किए और उनकी हत्या कर दी और बाकी लोगों को “जिप्सी” जैसे अपमानजनक शब्द का लेबल दिया गया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि नाजी एंटीजिप्सीवाद का समर्थन करते थे। एंटीजिप्सीवाद, जिसे रोमा-विरोधी भावना भी कहा जाता है, रोमानी लोगों और अपमानजनक रूप से "जिप्सी" कहे जाने वाले अन्य लोगों के प्रति घृणा या पूर्वाग्रह है। नाज़ियों ने रोमा को नस्लीय रूप से हीन और सामाजिक रूप से अपराधी के रूप में देखा। 

1930 के दशक में, नाज़ी जर्मनी ने नस्लीय कानूनों और अन्य तरीकों का उपयोग करके रोमानी लोगों पर अत्याचार किया। 1935 में, जर्मन अधिकारियों ने Zigeunerlager (”जिप्सी कैंप्स") स्थापित करना शुरू किया जहां उन्होंने रोमानी परिवारों को नजरबंद कर दिया। उन्होंने जबरन रोमानी लोगों की कानूनी रूप से और बहिष्कृत रूप से नसबंदी की। 

द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के बाद रोमानी लोगों के प्रति नाजी नीति और भी कट्टर हो गई। युद्ध के दौरान, नाज़ियों और उनके सहायकों और सहयोगियों ने यूरोपीय रोमा का नरसंहार किया। उन्होंने रोमानी लोगों की हत्या केंद्रों में, सामूहिक गोलीबारी अभियानों में, और यहूदी बस्ती और कैंप में क्रूर व्यवहार किया और उनकी हत्या की। ऑशविट्ज़ में "जिप्सी कैंप" (Zigeunerlager) विशेष रूप से बदनाम था। ऑशविट्ज़ और अन्य जेलखाना कैंप में, नाजी डॉक्टरों ने रोमानी कैदियों पर क्रूर चिकित्सा प्रयोग किए। कुल मिलाकर, कम से कम 250,000 - लेकिन संभवतः 500,000 - रोमानी लोग मारे गए थे।

जर्मनी में सामाजिक बाहरी लोग 

नाज़ी शासन ने कुछ जर्मनों पर अत्याचार किया जिन्हें वे सामाजिक बाहरी व्यक्ति मानते थे। उन्होंने उन लोगों को निशाना बनाया जो पुछड़े बर्ग के थे और गरीब थे, साथ ही कुछ प्रकार के आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोग भी थे। नाज़ी जर्मन प्रशासन ने इन जर्मनों को अपमानजनक लेबल “असामाजिक" ("Asozialen") और "पेशेवर अपराधी" ("Berufsverbrecher") का उपयोग करके संदर्भित किया। "असामाजिक" के रूप में लेबल किए गए लोगों के पास अक्सर स्थायी पते या स्थिर नौकरियों का अभाव होता है। कई लोगों को भीख मांगने, आवारागर्दी करने या वेश्यावृत्ति के आरोप में कई बार गिरफ्तार किया गया था। नाज़ियों ने उन्हें जैविक रूप से हीन और सामाजिक रूप से पथभ्रष्ट के रूप में देखा। “पेशेवर अपराधी” के रूप में लेबल किए गए लोगों के पास आमतौर पर संपत्ति अपराधों के लिए आपराधिक रिकॉर्ड थे और कई लोग दोबारा अपराध करने वाले थे। लेकिन कुछ पर कभी किसी अपराध का आरोप नहीं लगाया गया था। 

नाज़ी जर्मन शासन ने उन लोगों के साथ क्रूरतापूर्वक दुर्व्यवहार किया जिन्हें वह सामाजिक बाहरी व्यक्ति मानते था। जिन लोगों को सामाजिक बाहरी लोगों के रूप में देखा जाता था, अक्सर उनकी जबरन नसबंदी कर दी जाती थी। उन्हें गलत तरीके से और अनिश्चित काल के लिए जेलखाना कैंप्स में कैद कर दिया गया। कैंप में, “असामाजिक" के रूप में कैद किए गए लोगों को काले बैज पहनने पड़ते थे। जिन लोगों को “पेशेवर अपराधियों” के रूप में कैद किया गया था, उन्हें हरा बैज पहनना पड़ता था। नाजी नीतियों के परिणामस्वरूप “असामाजिक” या “पेशेवर अपराधी” करार दिए गए दसों-हजारों लोग मारे गए। 

सोवियत युद्धबंदी

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, नाज़ी जर्मनी ने सोवियत युद्धबंदियों (POWs) के साथ व्यवस्थित दुर्व्यवहार और सामूहिक हत्या की। नाजियों ने सोवियत युद्धबंदियों के साथ अत्यधिक क्रूरता का व्यवहार किया जो ब्रिटिश, फ्रांसीसी या अमेरिकी युद्धबंदियों के प्रति उनके व्यवहार से भिन्न था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि नाज़ियों ने कम्युनिस्ट सोवियत संघ (USSR) को एक अस्तित्वगत दुश्मन के रूप में देखा था जिसे नष्ट करने की आवश्यकता थी। वे सोवियत संघ में रहने वाले कई लोगों को नस्लीय और सांस्कृतिक रूप से अमानवीय मानते थे। 

A German soldier guards Soviet prisoners of war at the Uman camp in the Ukraine.

एक जर्मन सैनिक यूक्रेन में उमान कैंप में सोवियत युद्ध के कैदियों की रक्षा करता हुआ। सोवियत संघ, 14 अगस्त, 1941।

क्रेडिट:
  • National Archives and Records Administration, College Park, MD

नाजी जर्मनी ने जून 1941 में सोवियत संघ पर आक्रमण किया। जर्मन सेना ने तुरंत लाखों सोवियत सैनिकों को पकड़ लिया। कभी-कभी सेना युद्धबंदियों को सीधे मौत के घाट उतार देती थी। सुरक्षा स्क्वाड्रन और पुलिस ने नियमित रूप से हजारों सोवियत युद्धबंदियों को सिर्फ इसलिए चुना और मार डाला क्योंकि वे यहूदी, राजनीतिक कमिश्नर या कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे। मध्य एशिया से बड़ी संख्या में सोवियत युद्धबंदियों को नाजियों द्वारा इसलिए मार दिया गया क्योंकि उनके अनुसार उनकी नस्ल खराब थी या इसलिए क्योंकि नाजियों के गलती से उन्हें यहूदी समझ लिया। अन्य सोवियत युद्धबंदियों को लंबे मार्च, व्यवस्थित भुखमरी, कोई चिकित्सा देखभाल नहीं, बहुत कम या कोई आश्रय नहीं और जबरन श्रम का सामना करना पड़ा। अनेकों को युद्धबंदी कैंप और जेलखाना कैंप में अत्यंत क्रूर परिस्थितियों में रखा गया। 1941 और 1942 की शुरुआत में विशेष रूप से सोवियत युद्धबंदियों के साथ जर्मनों का व्यवहार क्रूर था। युद्ध के अंत तक, लगभग 3.3 मिलियन सोवियत कैदी (लगभग 58 प्रतिशत) जर्मन कैद में मारे गए। अधिकांश जर्मन-सोवियत युद्ध के पहले आठ महीनों में मारे गए थे।

फुटनोट

  1. Footnote reference1.

    इस संदर्भ में, "सहायक" आधिकारिक तौर पर नाज़ी जर्मनी के साथ संबद्ध एक्सिस देशों को संदर्भित करता है। “सहयोगी” उन शासनों और संगठनों को संदर्भित करता है जिन्होनें एक आधिकारिक या अर्ध-आधिकारिक क्षमता में जर्मन अधिकारियों के साथ सहयोग किया। इन जर्मन समर्थित सहयोगियों में कुछ स्थानीय पुलिस बल, नौकरशाही और अर्धसैनिक इकाइयाँ शामिल थीं। “सहायक” और “सहयोगी” शब्द इन सरकारों और संगठनों से संबद्ध व्यक्तियों को भी संदर्भित कर सकते हैं।

Thank you for supporting our work

We would like to thank Crown Family Philanthropies, Abe and Ida Cooper Foundation, the Claims Conference, EVZ, and BMF for supporting the ongoing work to create content and resources for the Holocaust Encyclopedia. View the list of all donors.

शब्दावली