
"अंतिम समाधान": अवलोकन
“यहूदी प्रश्न का अंतिम समाधान” शब्द नाजी जर्मनी के लीडरों द्वारा प्रयुक्त एक व्यंजना थी। इसका संदर्भ यूरोप के यहूदियों की सामूहिक हत्या से था। इसने यहूदियों को जर्मन राइक और यूरोप के अन्य भागों को छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करने या मजबूर करने वाली नीतियों को समाप्त कर दिया था। उन नीतियों को व्यवस्थित विनाश द्वारा बदल दिया गया था।
मुख्य तथ्य
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यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि हिटलर ने यूरोप के यहूदियों की हत्या करने का निर्णय कब लिया था। यह निर्णय संभवतः 1941 में सोवियत संघ पर आक्रमण करने के समय लिया गया था।
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जर्मनी की सुरक्षा पुलिस के प्रमुख रीनहार्ड हेड्रिक ने 20 जनवरी 1942 को एक गुप्त बैठक आयोजित की जिसे वानसी सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। पुलिस के प्रमुख औरनागरिकों के अधिकारियों ने "अंतिम समाधान" के कार्यान्वयन को जारी रखने पर चर्चा की थी।
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नाजी लीडरों ने “अंतिम समाधान” के हिस्से के रूप में 11 मिलियन यहूदियों को मारने की योजना बनाई थी। लेकिन वे 60 लाख लोगों की ही हत्या करने में सफल रहे। लेकिन वे 60 लाख लोगों की हत्या करने में सफल रहे।
"अंतिम समाधान" क्या था?
नाजियों का "यहूदी प्रश्न का अंतिम समाधान" (“Endlösung der Judenfrage”) यूरोपीय यहूदियों की जानबूझकर और बड़े पैमाने व्यवस्थित हत्या करने की योजना थी। यह होलोकॉस्ट का अंतिम चरण था और यह योजना 1941 से 1945 के बीच लागू की गई। हालांकि "अंतिम समाधान" के शुरू होने से पहले ही कई यहूदी मारे जा चुके थे, इस अवधि के दौरान अधिकांश यहूदी पीड़ितों की हत्या कर दी गई।
लेकिन यह ज्ञात नहीं हो पाया है कि नाजी जर्मनी के लीडरों ने कब "अंतिम समाधान" को लागू करने का निर्णय लिया था। हालांकि, यह स्पष्ट था कि नाज़ियों द्वारा लागू किए गए “अंतिम समाधान” एक दशक से लगातार बढ़ते भेदभावपूर्ण, यहूदी-विरोधी उपायों की योजना थी। आज, "अंतिम समाधान" शब्द का उपयोग यूरोप के यहूदियों के नरसंहार के लिए पर्याय के रूप में किया जाता है।
यहूदी विरोधी नीति बढ़ती जा रही थी
एडोल्फ हिटलर के शासन में यहूदियों का उत्पीड़न और अलगाव चरणबद्ध तरीके से किया गया था। साल 1933 में जर्मनी में नाजी पार्टी सत्ता में आने के बाद, उसके राज्य द्वारा प्रायोजित नस्लवाद के कारण यहूदी-विरोधी कानून, आर्थिक बहिष्कार और Kristallnacht ("टूटे शीशे की रात") पोगरोम जैसी हिंसा भड़क उठी, जिसका उद्देश्य चालाकी से यहूदियों को समाज से अलग करना और उन्हें देश से बाहर निकालना था।
सितम्बर 1939 के बाद जर्मन ने पोलैंड पर आक्रमण किया (द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत में), इसके बाद यहूदी विरोधी नीति इतनी बढ़ गई कि यूरोपीय यहूदियों को कारावास में डाल दिया गया और अंततः उनकी हत्या कर दी गई। नाजियों ने सबसे पहले जनरल गवर्नमेंट (मध्य और पूर्वी पोलैंड का एक क्षेत्र जो जर्मन नागरिक सरकार की देखरेख में था) और वार्थेगाऊ (पश्चिमी पोलैंड का एक क्षेत्र जो जर्मनी में मिला लिया गया था) में यहूदी घेटो (यहूदियों को समाज से अलग करने और नियंत्रित करने के लिए बनाए गए बंद क्षेत्र) की स्थापना की। पोलिश और पश्चिमी यूरोपीय यहूदियों को इन घेटो में निर्वासित कर दिया गया था, जहां वे अपर्याप्त भोजन के साथ भीड़भाड़ और अस्वच्छ (खराब) परिस्थितियों में रहते थे।

बड़े पैमाने पर हत्या करने का ऑपरेशन शुरू
जून 1941 में जर्मन ने जब सोवियत संघ पर आक्रमण किया, उसके बाद SS और पुलिस इकाइयों (मोबाइल हत्या इकाइयों के रूप में कार्य करते हुए) ने पूरे यहूदी समुदायों को निशाना बनाकर बड़े पैमाने पर हत्या करना शुरू कर दिया। साल 1941 के शरद ऋतु तक, SS और पुलिस ने मोबाइल गैस वैन शुरू कर दी। इन पैनलयुक्त ट्रकों की निकास पाइपों को इस प्रकार से फिर से बनाया गया था जैसे कि वे जहरीली कार्बन मोनोऑक्साइड गैस को सीलबंद स्थानों में पंप कर सकते थे, जिससे उनमें बंद लोगों की मृत्यु हो जाती थी। चल रहे शूटिंग ऑपरेशनों को पूरा करने के लिए इन्हें डिज़ाइन किया गया था।
17 जुलाई 1941 को, सोवियत संघ पर आक्रमण करने के चार सप्ताह बाद, जब हिटलर ने SS प्रमुख हेनरिक हिमलर को जर्मन कब्जे वाले सोवियत संघ में सभी सुरक्षा मामलों की जिम्मेदारी सौंप दी थी। हिटलर ने हिमलर को जर्मन के स्थायी शासन के लिए किसी भी संभावित खतरे को शारीरिक रूप से समाप्त करने के लिए व्यापक अधिकार दिए थे। उसके दो सप्ताह बाद, 31 जुलाई 1941 को, नाजी नेता हरमन गोअरिंग ने SS जनरल रीनहार्ड हेड्रिक को “यहूदी प्रश्न के पूर्ण समाधान” को कार्यान्वयन करने की तैयारी के लिए अधिकृत किया।
हत्या केंद्र
साल 1941 की शरद ऋतु में, SS प्रमुख हेनरिक हिमलर ने जर्मन जनरल ओडिलो ग्लोबोनिक (SS और ल्यूबलिन जिले के पुलिस लीडर) को जनरल गवर्नमेंट के यहूदियों की व्यवस्थित तरीके से हत्या की योजना लागू कराने का काम सौंपा। इस योजना का कोड नाम ऑपरेशन रेनहार्ड रख दिया गया, जिसका नाम हेड्रिक के नाम पर रखा गया था (जिनकी मई 1942 में चेक पक्षपातीयों द्वारा हत्या कर दी गई थी)। ऑपरेशन रेनहार्ड के एक भाग के रूप में, नाजी लीडरों ने पोलैंड में तीन हत्या केंद्र स्थापित किए थे - बेल्ज़ेक, सोबिबोर और ट्रेबलिंका केंद्र - जिनका एकमात्र उद्देश्य यहूदियों की सामूहिक हत्या करना था।

मजदानेक कैम्प समय-समय पर जनरल गवर्नमेंट में रहने वाले यहूदियों की हत्या करने के लिए एक स्थल के रूप में कार्य करता था। इस कैम्प के गैस चैंबरों में SS ने हजारों यहूदियों को मार डाला, जिनमें मुख्य रूप से वे मजबूर मजदूर थे जो काम नहीं कर पाते थे। SS और पुलिस ने लॉड्ज़ से लगभग तीस मील उत्तर-पश्चिम में स्थित चेल्मनो के हत्या केंद्र में गैस वैन में कम से कम 1,67,000 यहूदियों के साथ-साथ लगभग 4,300 रोमा (जिप्सी) लोगों की हत्या कर दी थी। साल 1942 के वसंत ऋतु में, हिमलर ने ऑशविट्ज़ II (ऑशविट्ज़-बिरकेनौ) को एक हत्या करने की फैसिलिटी घोषित कर दिया था। SS अधिकारियों ने ऑश्विट्ज़-बिरकेनौ में विभिन्न यूरोपीय देशों के लगभग दस लाख यहूदियों की हत्या कर दी थी।
जर्मन SS और पुलिस कर्मचारियों ने हत्या केंद्रों में लगभग 27,00,000 यहूदियों की या तो जहरीली गैस से दम घोंटकर या गोली मारकर हत्या कर दी थी। “अंतिम समाधान” को संपूर्ण रूप से गैस, गोली मारकर और अन्य तरीकों से सभी यूरोपीय यहूदियों की हत्या करने के लिए बनाया गया था। होलोकॉस्ट के दौरान छह मिलियन यहूदी पुरुष, महिलाएं और बच्चे मारे गए थे - यह आंकड़ा द्वितीय विश्व युद्ध से पहले यूरोप में रहने वाले यहूदियों का दो-तिहाई हिस्सा था।