अकादमिक

अन्य क्षेत्रों की तरह, अकादमिक दुनिया में विभिन्न प्रकार के पेशेवर-विश्वविद्यालय के अध्यक्षों से लेकर प्रोफेसरों तक- सक्रिय रूप से यहूदी सहयोगियों की बर्खास्तगी का काम करते थे या सहयोग करते थे।

विद्वान विशेषज्ञ, विशेष रूप से फिजिकल एंथ्रोपोलोजी, मनोरोग और आनुवंशिकी के क्षेत्र में - नाज़ियों के सत्ता में आने से पहले यूजीनिक्स के उत्साही समर्थक - नाज़ी नस्लीय नीतियों के सार्वजनिक मुखपत्र बन गए। कुछ लोगों ने विवादित "नस्लीय" मूलों के मामले में यह निर्धारित करने के लिए शोध किया कि कौन "यहूदी" था या नहीं था। लगभग सभी जाने-माने आनुवंशिकीविद्, मनोचिकित्सक और मानवविज्ञानी विशेष वंशानुगत स्वास्थ्य अदालतों में बैठे थे, जिन्होंने जबरन नसबंदी कार्यक्रम के लिए उचित प्रक्रिया का माहौल दिया, जबकि अन्य ने विशेषज्ञ राय पेश की। वैज्ञानिक विशेषज्ञों ने एसएस डॉक्टरों के लिए पाठ्यक्रम पढ़ाएं।

पुलिस के के अधीन काम कर रहे आपराधिक मनोविज्ञान के क्षेत्र में अकादमिक ने जर्मनी की रोमा और सिंटी आबादी का अध्ययन किया। उनकी खोज, इस विश्वास को दर्शाती है कि यह आबादी असामाजिक थी और आनुवंशिक रूप से इसका व्यवहार पूर्वनिर्धारित आपराधिक था, एसएस द्वारा युद्ध के दौरान रोमा का औशविट्ज़-बिरकेनौ निर्वासन के लिए इस्तेमाल किया गया था।

शिक्षक

सरकारी स्कूल के शिक्षकों को नाज़ी शिक्षक संघ में शामिल होने के लिए बाध्य किया गया था और, अन्य सिविल सेवकों की तरह, फ्यूहरर के रूप में हिटलर के प्रति वफादारी की एक शपथ लेने के लिए बाध्य किया गया था। शिक्षकों ने "नस्लों" और नाज़ी शिक्षा मंत्री द्वारा अनिवार्य किए गए अन्य नए विषयों के बीच अंतरों पर सामग्री प्रस्तुत की। इस तरह उन्होंने नाज़ी मान्यताओं को वैध बनाने में मदद की कि यहूदी "विदेशी जाति" से संबंधित थे, जिसने जर्मन लोगों की ताकत और स्वास्थ्य के लिए एक जैविक खतरा पैदा किया। फिर भी कक्षा के अंदर और बाहर, व्यक्तिगत विवेक का अवसर था।

 "स्कूल, मेरा प्यारा स्कूल।" -गिसेला ग्लेसर ने बताया की उसे और उसके परिवार को एक एकाग्रता शिविर में भेज दिया गया, तब उसके सहपाठिऔर शिक्षक जयकार कर उत्साह मना रहें थे।