वारसॉ यहूदी बस्ती से और उसकी ओर निर्वासन
1940 के उत्तरार्ध में, जर्मन अधिकारियों द्वारा सैकड़ों हज़ारों यहूदियों को वारसॉ यहूदी बस्ती में जाने के लिए मजबूर किया गया। अपने शीर्ष पर 400,000 से अधिक यहूदी लोग यहूदी बस्ती में रहते थे। वहां, जर्मनों ने उन्हें बुरी और बदतर परिस्थितियों में रखा। मई 1943 तक, जर्मन अधिकारियों ने 275,000 से अधिक यहूदी लोगों को ट्रेब्लिंका हत्या केंद्र में मौत के घाट उतारने के लिए भेज दिया। उन्होंने हज़ारों लोगों को यातना शिविरों में भेजा।
मुख्य तथ्य
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1940 के अंत में, जर्मन अधिकारियों ने वारसॉ के यहूदियों को यहूदी बस्ती में जाने के लिए मजबूर किया । कुछ महीने बाद, जनवरी 1941 में, जर्मन अधिकारियों ने पोलैंड के जर्मन सत्ताधीन क्षेत्रों से यहूदियों को वारसॉ यहूदी बस्ती में निर्वासित करना शुरू कर दिया।
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जुलाई 1942 में, जर्मन अधिकारियों ने यहूदियों को हत्या के लिए वारसॉ यहूदी बस्ती से ट्रेब्लिंका हत्या केंद्र में निर्वासित करना शुरू कर दिया।
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अप्रैल 1943 में, अभी भी वारसॉ यहूदी बस्ती में रह रहे यहूदियों ने विद्रोह करना शुरू कर दिया। जर्मन अधिकारियों और उनके सहायकों ने जवाबी प्रतिक्रिया काफी निर्दयी ढंग से दी। उन्होंने मई 1943 में वारसॉ यहूदी बस्ती को तबाह कर दिया।
वारसॉ यहूदी बस्ती में निर्वासन
जनवरी और मार्च 1941 के बीच, वारसॉ यहूदी बस्ती में वारसॉ के पश्चिम में छोटे समुदायों के यहूदियों को निर्वासित किया गया। अप्रैल और जुलाई 1942 के बीच, वारसॉ के पूर्व में होने वाले नज़दीकी शहरों, जर्मनी और पश्चिमी पोलैंड के जर्मन- कब्ज़े वाले क्षेत्रों से यहूदियों को वहां निर्वासित किया गया था। जर्मनों ने सैकड़ों की तादाद में रोमा (जिप्सियों) को भी वारसॉ यहूदी बस्ती में निर्वासित कर दिया।
जब यह अपने शीर्ष पर था, तब वारसॉ यहूदी बस्ती की कुल जनसंख्या 400,000 से अधिक थी। जर्मन नीतियों के माध्यम से इरादतन यहूदी बस्ती में दुर्दशा बढ़ा दी गईं, जैसे-जैसे समय बीता, यह और बदतर होती गईं।
वारसॉ यहूदी बस्ती से निर्वासन
जुलाई और सितंबर 1942 के बीच, गैर-जर्मन सहायकों द्वारा समर्थित जर्मन एसएस और पुलिस इकाइयों ने वारसॉ यहूदी बस्ती से लगभग 265,000 यहूदियों को ट्रेब्लिंका हत्या केंद्र में उनकी हत्या के लिए भेजा। जर्मन एसएस और पुलिस कर्मचारी हिंसा का उपयोग करते थे ताकि वे यहूदियों को उनके घरों या कार्यस्थलों से उम्सक्लागप्लात्ज़ (यातना बिंदु) की ओर जाने के लिए मजबूर कर सकें। वहां से, उन्होंने यहूदियों को मालकिनिया के लिए जा रहे मालवाहक कार में बैठने के लिए मजबूर किया, जो वारसॉ-बियालस्टॉक रेल लाइन पर था। रेलगाड़ियों के माल्किनिया पहुंचने पर उन्हें विशिष्ट रेल मार्ग से ट्रेब्लिंका की तरफ मोड़ दिया गया।
जर्मनों ने मांग की कि यहूदी परिषद (जुडेनराट) के सदस्य निर्वासन के लिए व्यवस्था में मदद करें। वारसॉ में यहूदी परिषद के प्रमुख, एडम ज़ेर्नियाको ने सहयोग देने से मना कर दिया। हालांकि, ज़ेर्नियाको ने जर्मनों का प्रतिरोध तो नहीं किया, लेकिन उन्होंने निर्वासन आदेश पारित करने से मना कर दिया और 23 जुलाई, 1942 को साइनाइड कैप्सूल निगलकर आत्महत्या कर ली।
सामान्यतः, जर्मनों और उनके सहायकों ने यहूदियों को शहर के एक ब्लॉक की घेराबंदी करके घेर लिया और क्रमानुसार निवासियों को सड़क पर आने का दबाव डाला। फिर उन्होंने यहूदियों को भारी पहरे के बीच उम्सक्लागप्लात्ज़ तक चलकर जाने का दबाव डाला। जैसे ही एक ब्लॉक को खाली कर दिया जाता, वहां के जर्मन एसएस और पुलिस इकाइयाँ और उनके सहायक अगले ब्लॉक को सुरक्षित करने और प्रक्रिया दोहराने में जुट जाते थे। जर्मन एसएस और पुलिसकर्मी यहूदियों को और तेज़ी से चलने के लिए बुरी तरह पीटा करते थे; जो लोग चल नहीं पा रहे थे या चलना नहीं चाहते थे, उन्हें गोली मार दी जाती थी। छुपे हुए यहूदियों को लुभाने के लिए, जर्मन अधिकारी अक्सर इस बात का सहारा लेते थे कि निर्वासन समाप्त हो गया है और जो लोग निर्वासित नहीं हुए हैं, उन्हें भोजन दिया जाएगा। कुछ यहूदी जो भूख के कारण दम तोड़ रहे थे,इस बात से बेख़बर थे कि उन्हें हत्या के लिए ले जाया जाएगा, उन्होंने रिपोर्ट की और उन्हें भी ट्रेब्लिंका भेज दिया गया। निर्वासन के अंत में, जर्मन सेना और सहयोगियों ने छुपे हुए यहूदियों को तलाश करने के लिए उस समय खाली पड़े अपार्टमेंट के घरों और कार्यस्थलों की व्यवस्थित ढंग से तलाशी ली।
सितंबर 1942 में, तकरीबन 60,000 यहूदी ही यहूदी बस्ती में रह गए। जनवरी 1943 में, जर्मन एसएस और पुलिस इकाइयों ने वारसॉ यहूदी बस्ती के तकरीबन 5,000 यहूदी निवासियों को ट्रेब्लिंका में निर्वासित किया। तीन दिनों तक चले इस ऑपरेशन के दौरान, 1,171 यहूदी बस्ती निवासियों को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया।
19 अप्रैल और 16 मई, 1943 के बीच, जर्मन एसएस और पुलिस बलों ने, ट्रॉनिकी प्रशिक्षण शिविर से खासतौर पर प्रशिक्षित सहायक पुलिस गार्डों की एक बटालियन द्वारा समर्थित, वारसॉ यहूदी बस्ती को तहस-नहस कर डाला। यहूदी निवासियों ने जब शुरूआती निर्वासन प्रयासों का विरोध किया (जिसे वारसॉ यहूदी बस्ती विद्रोह के तौर पर जाना जाता है), एसएस और पुलिस हैरान रह गए और दर्जनों की संख्या में जनहानि हुई। जर्मनों ने प्रतिरोध को तोड़ने के लिए ब्लॉक दर ब्लॉक यहूदी बस्ती को तबाह किया। इस कार्रवाई के दौरान 7,000 से अधिक यहूदी मारे गए, जिनमें से ज़्यादातर प्रतिरोध सेनानी या यहूदी बस्ती में छिपे हुए व्यक्ति थे। उनमें से अधिकतर को एसएस और जर्मन पुलिस से हुई लड़ाई में गोली मार दी गई थी। जर्मनों ने तकरीबन 7,000 से अधिक यहूदियों को ट्रेब्लिंका में निर्वासित किया और लगभग 42,000 को जनरलगवर्नमेंट के ल्यूबेल्स्की ज़िले में यातना शिविरों और बलपूर्वक मज़दूरी कराने वाले शिविरों में भेजा गया। इस समूह में से, तकरीबन 18,000 यहूदियों को मजदानेक शिविर में, तकरीबन 16,000 को पोनियाटोवा मज़दूर-श्रम शिविर में और तकरीबन 6,000 को ट्रॉनिकी जबरन-श्रम शिविर में भेज दिया था। बचे हुए 2,000 को बुडज़िन और क्रास्निक जैसे छोटे मज़दूर शिविरों में बांट दिया गया।
यहूदी बस्ती की तबाही के बाद, एसएस अधिकारियों ने वारसॉ यहूदी बस्ती की साइट पर छोटा सा यातना शिविर स्थापित किया।