
सोबिबोर विद्रोह
सबसे प्रतिकूल परिस्थितियों में, यहूदी कैदियों ने कुछ नाज़ी कैंपों में प्रतिरोध और विद्रोह शुरू किया। 14 अक्टूबर, 1943 को, सोबिबोर में कैदियों ने कैंप के SS कर्मचारियों के 11 सदस्यों की हत्या कर दी, जिसमें डिप्टी कमांडेंट जोहान नीमन भी शामिल थे। लगभग 300 कैदी कंटीली तार तोड़कर और खतरनाक बारूदी सुरंगों को पार करके कैंप से भागने में सफल रहे। हालाँकि, उनमें से केवल 50 ही युद्ध में बच पाए।
सोबिबोर यहूदियों की हत्या के एकमात्र उद्देश्य के लिए स्थापित नाज़ी जर्मनी के हत्या केंद्रों में से एक था। जर्मन SS और पुलिस अधिकारियों ने 1942 के वसंत में सोबिबोर का निर्माण किया। इसे ऑपरेशन रेनहार्ड के फ्रेमवर्क के भीतर दूसरे हत्या केंद्र के रूप में बनाया गया था, जिसे Generalgouvernement (सामान्य सरकार) के यहूदियों की हत्या करने के लिए SS और लुबलिन में पुलिस नेता द्वारा कार्यान्वित किया गया था।
विद्रोह की योजना
1943 की गर्मियों में, सोबिबोर हत्या केंद्र में वहाँ के गैस चेंबर्स में हत्या के लिए भेजे गए पीड़ितों की संख्या में गिरावट देखी गई। इससे वहां जबरन काम कर रहे कैदी चिंतित हो गए और उन्हें लगने लगा कि शायद कैंप बंद हो जाएगा और सभी कैदी मारे जाएंगे। लियोन फेल्डहैंडलर के नेतृत्व में पोलिश यहूदियों के एक समूह ने मिलकर भागने की योजना बनाने के लिए एक गुप्त समिति का गठन किया। हालांकि, इस समूह के सदस्यों को सैन्य अनुभव नहीं था और उन्होंने इसमें बहुत कम प्रगति की थी।
जब सितंबर में रेड आर्मी के यहूदी सैनिकों का एक समूह मिन्स्क से सोबिबोर आया, तो अन्य कैदियों ने उनसे मदद और सलाह मांगी। तीन हफ्तों के अंदर ही, लेफ्टिनेंट अलेक्जेंडर पेचर्सकी ने एक विस्तृत योजना तैयार की। योजना कुछ ऐसी थी - सबसे पहले, सोवियत कैदी गुप्त रूप से SS के कुछ अधिकारियों को मार देंगे, उनके हथियार और वर्दी ले लेंगे। फिर, जब शाम को हाजिरी के लिए लगभग 600 कैदी इकट्ठे होते हैं, तो कैंप के कर्मचारी जो SS की वर्दी और हथियारों में होंगें, सैनिक गेट और टावरों में मौजूद गार्डों पर हमला कर देंगे और अन्य कैदियों को भागने के लिए कहेंगे। विद्रोह एक दिन के लिए निर्धारित किया गया था जब सोबिबोर के कमांडेंट और इसके कई प्रमुख अधिकारी दूर होंगे।
विद्रोह
विद्रोह 14 अक्टूबर, 1943 की दोपहर लगभग 4:00 बजे शुरू हुआ। कैंप-वन में, डिप्टी कमांडेंट, जोहान नीमैन को सूट फिटिंग के लिए दर्जी की दुकान में ले जाया गया। फिर उन्होंने उसे कुल्हाड़ी से मार डाला। कैंप टू में, कैदियों ने एक गोदाम में जहां पीड़ितों की चीजें रखी जाति थीं, SS NCO जोसेफ वुल्फ को कोट पहन कर देखने के लिए मनाया, और कुल्हाड़ी से उसकी हत्या भी कर दी। अगले एक घंटे के दौरान, इसी तरह नौ और SS कर्मी मारे गए।
जैसे ही कैदी हाजिरी के लिए इकट्ठे हुए, बाकी कैंप कर्मियों ने स्थिति से चिंतित होकर कैदियों पर गोलीबारी शुरू कर दी। कैंप के प्रतिरोध करने वाले सदस्य, जिनके पास हथियार थे, जब उन्होंने जवाबी गोलीबारी की, 300 से अधिक कैदी कैंप से भाग निकले।
कई कैदी भागने के दौरान गोली लगने से मारे गए या कैंप के आसपास की बारूदी सुरंगों में मारे गए। विद्रोह के बाद के दिनों में SS, पुलिस और जर्मन सेना इकाइयों द्वारा चलाए गए बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान के दौरान कम से कम 100 अन्य लोगों को पकड़ लिया गया और मार दिया गया। लगभग 200 भागने वालों में से, जो तुरंत पकड़े नहीं जा सके, केवल 50 ही युद्ध में जीवित बचे, अक्सर स्थानीय लोगों की मदद से या पक्षपातपूर्ण समूहों में शामिल होकर। दूसरी ओर, कई भागने वाले जो जीवित नहीं बच पाए, उन्हें जर्मनों के हाथों धोखा दे दिया गया या पोलिश नागरिकों या गुरिल्लाओं द्वारा मार दिया गया।
अंत में, योजनाबद्ध तरीके से भागने के क्रम में कैदियों ने सोबिबोर SS स्टाफ के ग्यारह सदस्यों की हत्या कर दी। दो या अधिक गैर-जर्मन SS सहायक गार्ड, जो गलत समय पर गलत स्थान पर थे, भी मारे गए। सोबिबोर में बचे हुए सभी कैदियों को —जिनमें से कुछ ने पूरी रात बंदूकों और कुल्हाड़ियों से लड़ाई की थी—अगले ही दिन रात में, 15 अक्टूबर को गोली मार दी गई।
कुछ ही समय बाद, SS ने ट्रेबलिंका से यहूदी कैदियों के एक समूह को लाया ताकि हत्या फ़ैसिलिटीज़ नष्ट किए जा सकें और सोबिबोर के असली उद्देश्य को छुपाया जा सके। नवंबर 1943 के अंत में, उन यहूदी कैदियों की भी हत्या कर दी गई।