
सेंट लुईस की जलयात्रा
मई 1939 में, जर्मन लाइनर सेंट लुईस जहाज हैम्बर्ग, जर्मनी से हवाना, क्यूबा के लिए रवाना हुआ। उसमें यात्रा कर रहें 937 यात्रियों में से लगभग सभी यहूदी शरणार्थी थे। क्यूबा की सरकार ने जहाज़ को उतरने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा यात्रियों को प्रवेश देने के लिए तैयार नहीं थे। आखिरकार, सेंट लुईस जहाज के यात्रियों को नाजी जर्मनी लौटने के बजाय पश्चिमी यूरोपीय देशों में उतरने की अनुमति दे दी गई। अंततः, होलोकॉस्ट में 254 सेंट लुइस यात्री मारे गये।
मुख्य तथ्य
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सेंट लुईस जहाज जब हवाना पहुंचा तब सभी यात्रियों को पता चला कि क्यूबा सरकार ने उनके लैंडिंग परमिट को रद्द कर दिया हैं। अमेरिकी यहूदियों की जॉइंट डिस्ट्रीब्यूशन कमेटी (JDC) ने यात्रियों की ओर से क्यूबा के साथ बातचीत की, लेकिन वार्ता असफल रही और क्यूबा सरकार ने जहाज को बंदरगाह से वापस चले जाने के लिए मजबूर कर दिया।
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हालांकि उसके बाद जहाज फ्लोरिडा तट के निकट पहुंचा, लेकिन अमेरिकी सरकार ने भी यात्रियों को उतरने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि उनके पास अमेरिकी इमिग्रेशन वीजा नहीं था और उन्होंने सुरक्षा जांच भी पास नहीं की थी। अमेरिकी समाचार पत्रों ने इस घटना को प्रचारित किया और अनेक अमेरिकी नागरिकों ने यात्रियों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की।
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हालांकि उसके बाद जहाज फ्लोरिडा तट के निकट पहुंचा, लेकिन अमेरिकी सरकार ने भी यात्रियों को उतरने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि उनके पास अमेरिकी इमिग्रेशन वीजा नहीं था और उन्होंने सुरक्षा जांच भी पास नहीं की थी। अमेरिकी समाचार पत्रों ने इस घटना को प्रचारित किया और अनेक अमेरिकी नागरिकों ने यात्रियों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की।

13 मई, 1939 के दिन, जर्मन लाइनर सेंट लुईस जहाज हैम्बर्ग, जर्मनी से हवाना, क्यूबा के लिए रवाना हुआ। इस जलयात्रा में 937 यात्री सवार थे। लगभग सभी लोग थर्ड रिच से भागकर आए यहूदी थे। इनमें से अधिकांश यात्री जर्मन नागरिक थे, कुछ पूर्वी यूरोप से थे, और कुछ आधिकारिक तौर पर "राज्यविहीन" थे। उसमें से अधिकांश यहूदी यात्रियों ने संयुक्त राज्य अमेरिका वीज़ा के लिए आवेदन भी किया था, और उन्होंने क्यूबा में तब तक रहने की योजना बनाई थी, जब तक वे संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश नहीं कर लेते।
लेकिन जब सेंट लुईस जहाज रवाना हुआ, तब तक ऐसे संकेत मिलने लगे थे कि क्यूबा की राजनीतिक परिस्थितियों के कारण यात्रियों को वहां उतरने से रोका जाएगा। वाशिंगटन का अमेरिकी राज्य विभाग, हवाना में स्थित अमेरिकी वाणिज्य दूतावास, कुछ यहूदी संगठन और शरणार्थी एजेंसियां सभी इस स्थिति से अवगत थे। बस यात्रियों को इसकी जानकारी नहीं दी गई थी; अंत में अधिकांश यात्रियों को यूरोप लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा।
जलयात्रा से पहले
9-10 नवंबर 1938 के Kristallnacht (अक्षरशः "क्रिस्टल की रात", जिसे सामान्यतः "टूटे शीशे की रात" के नाम से जाना जाता है) पोगरोम के बाद से, जर्मन सरकार ने यहूदियों के जबरन इमिग्रेशन की गति को तेज करने का प्रयास किया था। जर्मन का विदेश कार्यालय और प्रचार प्रसार मंत्रालय भी अन्य देशों की बड़ी संख्या में यहूदी शरणार्थियों को स्वीकार न करने की इच्छा का फायदा उठाने की आशा कर रहे थे, ताकि जर्मनी में और पूरे विश्व में नाजी शासन के यहूदी विरोधी लक्ष्यों और नीतियों को उचित ठहराया जा सके।
सेंट लुईस जहाज, हैम्बर्ग-अमेरिका लाइन के मालिकों को जहाज के रवाना होने से पहले ही पता था कि उनके यात्रियों को क्यूबा में प्रवेश करने में परेशानी हो सकती है। लेकिन जिन यात्रि के पास क्यूबा के आव्रजन महानिदेशक द्वारा जारी लैंडिंग प्रमाण-पत्र औरट्रांजिट वीज़ा थे, उन सबको यह पता नहीं था कि क्यूबा के राष्ट्रपति फेडेरिको लारेडो ब्रू ने जहाज के रवाना होने से ठीक एक सप्ताह पहले एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत हाल ही में जारी किए गए सभी लैंडिंग प्रमाण-पत्रों को अमान्य कर दिया गया था। क्यूबा में प्रवेश करने के लिए क्यूबा के राज्य और श्रम सचिवों से लिखित अनुमति और 500 डॉलर का बांड (अमेरिकी पर्यटकों के लिए बांड माफ कर दिया गया था) जमा करना आवश्यक था।
क्यूबा में आए प्रवासी लोगों के प्रति शत्रुता
सेंट लुईस की जलयात्रा ने मीडिया का काफी ध्यान आकर्षित किया। जहाज हैम्बर्ग से रवाना होने से पहले ही, दक्षिणपंथी क्यूबा के समाचार पत्रों ने इसके आगमन पर दुःख व्यक्त किया और क्यूबा सरकार यहूदी शरणार्थियों को प्रवेश देना बंद कर दे इसकी मांग की थी। वास्तव में, सभी यात्री क्यूबा सरकार के भीतर चल रही कटु लड़ाई का शिकार हो गए थे। क्यूबा के इमिग्रेशन कार्यालय के महानिदेशक मैनुअल बेनिटेज़ गोंजालेज द्वारा लैंडिंग प्रमाणपत्रों की अवैध बिक्री करने के कारण वे सार्वजनिक जांच के दायरे में आ गए थे। वह नियमित रूप से इन प्रमाणपत्रों को 150 डॉलर या उससे अधिक की कीमत पर बेचते थे और अमेरिकी अनुमान के अनुसार, उन्होंने 500,000 से 1,000,000 डॉलर तक की निजी संपत्ति अर्जित कर ली थी। हालांकि वह क्यूबा के सेना प्रमुख (और भावी राष्ट्रपति) फुल्गेंसियो बतिस्ता के शागिर्द शिष्य थे, लेकिन भ्रष्टाचार के माध्यम से बेनिटेज़ की स्वय-संपन्नता ने क्यूबा सरकार में इतना आक्रोश पैदा कर दिया था कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
क्यूबा में पैसे, भ्रष्टाचार और आंतरिक सत्ता संघर्ष से भी अधिक कुछ चल रहा था। सामान्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका और अमेरिका की तरह, क्यूबा को भी महामंदी से संघर्ष करना पड़ा था। क्यूबा के कई लोग शरणार्थियों की अपेक्षाकृत बड़ी संख्या (जिनमें 2,500 यहूदी भी शामिल थे) से नाराज थे, जिन्हें सरकार ने पहले ही देश में प्रवेश दे दिया था, क्योंकि वे देश में दुर्लभ नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धी हो जाते थे।
इमिग्रेंट्स लोगों के प्रति शत्रुता ने यहूदी-विरोध और ज़ेनोफ़ोबिया को बढ़ावा दिया। नाजी जर्मनी और स्थानीय दक्षिणपंथी आंदोलनों के के एजेंटों ने अपने प्रकाशनों और प्रदर्शनों में इमिग्रेंट्स मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया और यह दावा किया था कि आने वाले यहूदी कम्युनिस्ट है। इनमें से दो अखबारों ने - प्रभावशाली रिवेरो परिवार के मालकी का डायारियो डे ला मरीना अखबार और ज़ायस परिवार के मालकी का एवेंस अखबार- इन अखबारों ने स्पेनिश फ़ासिस्ट लीडर जनरल फ्रांसिस्को फ्रेंको का समर्थन किया था, जिन्होंने तीन साल के गृहयुद्ध (सिविल वार) के बाद, नाजी जर्मनी और फ़ासिस्ट इटली की मदद से 1939 के वसंत ऋतु में स्पेनिश गणराज्य को उखाड़ फेंका था।
शुरू होने वाले जलयात्रा के बारे में रिपोर्टों ने 8 मई को हवाना में एक बड़े यहूदी विरोधी प्रदर्शन को हवा दी, जो सेंट लुईस जहाज के हैम्बर्ग से रवाना होने से पांच दिन पहले हुआ था। क्यूबा के इतिहास में सबसे बड़ी यहूदी विरोधी प्रदर्शन की गई यह रैली थी, जिसे क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति ग्राउ सान मार्टिन द्वारा प्रायोजित किया गया था। ग्राऊ के प्रवक्ता प्रिमिटिवो रोड्रिगेज ने क्यूबावासियों से आग्रह किया कि वे "यहूदियों से तब तक लड़ें जब तक कि आखिरी यहूदी को भी देश से बाहर न निकाल दिया जाए।" इस प्रदर्शन में 40,000 दर्शक शामिल हुए थे। हजारों लोगों ने इस भाषण को रेडियो परसुना।
सेंट लुईस जहाज का हवाना में आगमन
जब 27 मई को सेंट लुईस जहाज हवाना बंदरगाह पर पहुंचा, तो क्यूबा सरकार ने केवल 28 यात्रियों को प्रवेश दिया: उनमें से 22 यहूदी थे और उनके पास वैध अमेरिकी वीज़ा था; बाकी के छह यात्रियों में - चार स्पेनिश नागरिक और दो क्यूबा के नागरिक थे - जिनके पास प्रवेश करने के वैध दस्तावेज थे। इनके अलावा। एक अन्य यात्री भी शामिल था जिसने आत्महत्या का प्रयास किया था और उसे हवाना के एक अस्पताल में ले जाया गया। बचे हुए 908 यात्री (एक यात्री की रास्ते में प्राकृतिक कारणों से मृत्यु हो गई थी) - जिनमें हंगरी का एक यहूदी व्यवसायी भी शामिल थे जो गैर-शरणार्थी थे - प्रवेश वीज़ा की प्रतीक्षा कर रहे थे और उनके पास केवल गोंजालेज द्वारा जारी क्यूबा ट्रांजिट वीज़ा था। 743 यात्री अमेरिकी वीज़ा प्राप्त करने की प्रतीक्षा कर रहे थे। क्यूबा सरकार ने उन्हें प्रवेश देने या जहाज से उतरने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।
जब क्यूबा ने सेंट लुईस जहाज पर यात्रियों को प्रवेश देने से इनकार कर दिया, तो संयुक्त राज्य अमेरिका सहित पूरे यूरोप और अमेरिका के प्रेस ने इस कहानी को दुनिया भर के लाखों अखबार पढ़ने वालों तक पहुंचाया। हालांकि, आम तौर पर अमेरिकी समाचार पत्रों ने यात्रियों की दुर्दशा को बड़ी सहानुभूति के साथ चित्रित किया, लेकिन केवल कुछ पत्रकारों और संपादकों ने ही सुझाव दिया कि शरणार्थियों को संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश दिया जाना चाहिए।
28 मई को, सेंट लुईस जहाज हवाना में पहुंचने के अगले दिन, अमेरिका आधारित यहूदी जॉइंट डिस्ट्रीब्यूशन कमेटी (JDC) का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील लॉरेंस बेरेनसन, सेंट लुईस यात्रियों की ओर से बातचीत करने के लिए क्यूबा पहुंचे। क्यूबा-अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष बेरेनसन को क्यूबा में काफी व्यापक व्यावसायिक अनुभव था। वे राष्ट्रपति ब्रू से मिले, लेकिन यात्रियों को क्यूबा में प्रवेश देने के लिए उन्हें मनाने में असफल रहे। 2 जून को ब्रू ने जहाज को क्यूबा के जलक्षेत्र से बाहर जाने का आदेश दिया। इस आदेश के बाद भी, वार्ता जारी थी, जबकि सेंट लुईस जहाज धीरे-धीरे मियामी की ओर बढ़ रहा था। ब्रू ने यात्रियों को प्रवेश देने की पेशकश की, पर शर्त थी कि JDC 453,500 डॉलर (प्रति यात्री 500 डॉलर) का बांड उन्हें दे दें। बेरेन्सन ने जवाबी प्रस्ताव दिया, लेकिन ब्रू ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और इस वार्ता को यही बंद कर दिया।
आप जानते हैं, हम हमेशा इस आशा में लगे रहते थे हैं कि कुछ न कुछ अवश्य होगा। हमें लगता था वे हमें समुद्र में सड़ने नहीं देंगे। मेरा मतलब है, हमारे साथ कुछ तो होने वाला ही था। बेशक, डर यह था कि हमें जर्मनी वापस लेकर न जाएंगे।
शरण की तलाश
जहाज फ्लोरिडा के इतने करीब पहुंच गया था की यात्री मियामी की रोशनी देख सकते थे, तभी सेंट लुईस के कुछ यात्रियों ने राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट को केबल भेजकर शरण देने का निवेदन किया। लेकिन उस निवेदन पर रूजवेल्ट ने कभी कोई जवाब नहीं दिया। राज्य विभाग और व्हाइट हाउस ने शरणार्थियों को संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश की अनुमति देने के लिए कोई असाधारण कदम न उठाने का निर्णय लिया था। एक यात्री को भेजे गए राज्य विभाग के टेलीग्राम में कहा गया था कि यात्रियों को “प्रतीक्षा सूची में अपनी बारी का इंतजार करना होगा और संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश पाने से पहले इमिग्रेशन वीज़ा के लिए अर्हता प्राप्त करनी होगी।” हवाना में अमेरिकी डिप्लोमैट्स ने एक बार फिर क्यूबा सरकार के साथ हस्तक्षेप करके यात्रियों को "मानवीय" आधार पर प्रवेश दिलाने के लिए प्रयास किया, लेकिन इसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिली।
संयुक्त राज्य अमेरिका में इमिग्रेशन के लिए बाधाएं
1924 के संयुक्त राज्य अमेरिका इमिग्रेशन और राष्ट्रीयता अधिनियम में कोटा स्थापित किया गया था, जिसमें प्रति वर्ष संयुक्त राज्य में प्रवेश पाने वाले आप्रवासियों की संख्या को सख्ती से सीमित कर दिया गया था। साल 1939 में, वार्षिक जर्मन-ऑस्ट्रियाई संयुक्त इमिग्रेशन कोटा 27,370 लोगों का था और यह कोटा शीघ्र ही भर गया था। वास्तव में, इस इमिग्रेशन कोटा के लिए प्रतीक्षा सूची कई वर्षों तक के लिए हुआ करती थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकारी सेंट लुईस जहाज के यात्रियों को वीजा तभी दे सकते थे जब वे प्रतीक्षा सूची में प्रतीक्षा कर रहे हजारों जर्मन यहूदियों को वीजा देने से इंकार कर देते। हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका में जनता की राय शरणार्थियों की दुर्दशा के प्रति सहानुभूतिपूर्ण और हिटलर की नीतियों की आलोचना करने वाली थी, फिर भी उनके हिसाब से इमिग्रेशन पर प्रतिबंध लगाना सही निर्णय था।
क्योंकि, संयुक्त राज्य अमेरिका में आई महामंदी (ग्रेट डिप्रेशन) के कारण वहां के लाखों लोग बेरोजगार हो गए थे और वे सभी उपलब्ध नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ने से भयभीत हो गए थे। इसने यहूदी-विरोध, ज़ेनोफ़ोबिया (विदेशी-द्वेष), मूलनिवासीवाद (नेटिविज्म) और पृथकतावाद को भी बढ़ावा दिया। उस समय फॉर्च्यून मैगज़ीन के एक सर्वेक्षण से पता चला था कि 83 प्रतिशत अमेरिकी इमिग्रेशन पर लगाए गए प्रतिबंधों पर छूट देने का विरोध कर रहे थे। राष्ट्रपति रूजवेल्ट सेंट लुइस शरणार्थियों को स्वीकार करने के लिए एक कार्यकारी आदेश जारी कर सकते थे। हालाँकि, आप्रवासियों के प्रति सार्वजनिक शत्रुता और अन्य राजनीतिक विचारों ने उन्हें यह कदम उठाने से हिचकाया। उदाहरण के लिए, अलगाववादी रिपब्लिकन ने 1938 के कांग्रेस के चुनावों में सीटें हासिल की थीं। इसके अलावा, रूजवेल्ट राष्ट्रपति के रूप में एक अभूतपूर्व तीसरे कार्यकाल के लिए दौड़ने पर विचार कर रहे थे।
इस इमिग्रेशन मुद्दे पर राष्ट्र की भावना को चुनौती देने के लिए केवल रूजवेल्ट झिझक नहीं रहे थे। सेंट लुइस के रवाना होने से तीन महीने पहले, सीनेटर रॉबर्ट वैगनर (डी-एन.वाई.) और प्रतिनिधि एडिथ रोजर्स (आर-मैसाचुसेट्स) ने एक विधेयक पेश किया था, जिसके तहत मौजूदा कोटे के बाहर 20,000 जर्मन शरणार्थी बच्चों को प्रवेश दिया जाना था। महीनों की बहस के बाद, कांग्रेस के नेताओं ने वैगनर-रोजर्स विधेयक को मतदान से पहले ही खत्म होने दिया।
मई 1939 में यहूदी शरणार्थियों को लेकर दो छोटे जहाज क्यूबा के लिए रवाना हुए थे। फ्रांसीसी जहाज फ्लैंड्रे में 104 यात्री सवार थे; और ब्रिटिश जहाज ऑर्डुना में 72 यात्री सवार थे। सेंट लुईस जहाज की तरह ही, इन जहाजों को भी क्यूबा में रुकने की अनुमति नहीं दी थी। फ़्लैंड्रे जहाज फ्रांस में अपने प्रस्थान जगह की ओर वापस लौट गया था, जबकि ऑर्डुना जहाज लैटिन अमेरिकी बंदरगाहों की श्रृंखला की ओर आगे बढ़ता गया। इस जहाज के यात्रियों को आखिरकार अमेरिकी नियंत्रण वाले कैनाल जोन पनामा में प्रवेश दिया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका ने उनमें से अधिकांश यात्रियों को स्वीकार कर लिया।
यूरोप वापस लौटना

जब अमेरिकी सरकार द्वारा यात्रियों को उतरने की अनुमति देने से इनकार किया गया, तब सेंट लुईस जहाज 6 जून 1939 को वापस यूरोप के लिए रवाना हो गया था। लेकिन, उस जहाज के यात्री वापस जर्मनी नहीं लौटे। यहूदी संगठनों (विशेष रूप से यहूदी जॉइंट डिस्ट्रीब्यूशन कमेटी ने) ने यात्रियों के लिए प्रवेश वीज़ा सुरक्षित करने के लिए चार यूरोपीय सरकारों के साथ बातचीत की थी:
- ग्रेट ब्रिटेन देश ने 288 यात्रियों को शरण ले लिया
- नीदरलैंड देश ने 181 यात्रियों को शरण ले लिया
- बेल्जियम देश ने 214 यात्रियों को शरण ले लिया
- और फ्रांस देश में कम से कम 224 यात्रियों को अस्थायी शरण दिया गया।
ग्रेट ब्रिटेन द्वारा स्वीकार शरण दिए गए 288 यात्रियों में से केवल एक शरणार्थी को छोड़कर सभी शरणार्थी द्वितीय विश्व युद्ध में जीवित बच गए, और केवल वही एक शरणार्थी 1940 में हवाई हमले के दौरान मारा गया था। 620 यात्रियों में से महाद्वीप पर वापस लौटे हुए 87 यात्री (14%) मई 1940 में जर्मन द्वारा पश्चिमी यूरोप पर आक्रमण करने से पहले ही पलायन करके इमिग्रेट करने में सफल रहे। सेंट लुइस के 532 यात्री जो समय रहते प्रवास करने में असमर्थ थे, वे जर्मनी द्वारा पश्चिमी यूरोप पर विजय प्राप्त करने के बाद फंस गए। उनमें से आधे से ज़्यादा यानी 278 लोग ही होलोकॉस्ट से बच पाए। मरने वाले 254 यात्रियों में 84 बेल्जियम में थे; 84 ने हॉलैंड में शरण ली थी; और 86 को फ्रांस में भर्ती कराया गया था।