
सेंट लुईस जहाज के यात्रियों का युद्धकालीन भाग्य
क्यूबा में सुरक्षित आश्रय न दिए जाने पर और उसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश करने के लिए की गई अपील को ठुकराने के बाद, सेंट लुईस के यात्री ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम या नीदरलैंड में उतर गए। जहाज में सवार प्रत्येक यात्रियों का भाग्य कई कारकों पर निर्भर करता था, जिनमें भौगोलिक स्थिति और जर्मनी के खिलाफ युद्ध की स्थिति भी शामिल थी।
मुख्य तथ्य
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प्रत्येक देश में शरणार्थियों को अनिश्चितता और वित्तीय कठिनाई का सामना करना पड़ा। शुरुआती समय में उन्हें अस्थायी दर्जा दिया गया था और हमेशा शरणार्थी कैम्प में रखा जाता था।
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यात्रियों को पश्चिमी यूरोप में नाजी द्वारा कब्जे वाले अन्य यहूदियों के समान अनुभव से गुजरना पड़ा था। उनमें से कई सारे लोगों की हत्या जर्मनों ने हत्या केंद्रों और यातना कैम्प में करी थी। अन्य लोग छिप गए या कई वर्षों तक जबरन मजदूरी करते रहे। कुछ लोग वहां से भागने में सफल रहे।
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महाद्वीप पर वापस लौटे 620 यात्रियों में से 532 उस समय फंस गए थे जब जर्मनी ने पश्चिमी यूरोप पर कब्जा कर लिया था। उसमें आधे से कुछ अधिक ही मतलब 278 लोग होलोकॉस्ट से बच गए। उनमें से 254 यात्रियों की मृत्यु हुई: इनमें से 84 लोग बेल्जियम में थे; 84 लोग हॉलैंड में शरण लिए हुए थे, और 86 लोग फ्रांस में प्रवेश दिए हुए थे।
यूरोप लौटना

मई 1940 में जर्मन सेना ने पश्चिमी यूरोप पर आक्रमण किया था। जो यहूदी शरणार्थी सेंट लुईस, रीच से भागकर जाने के बाद जिन्हें फ्रांस और छोटे देशों में शरण मिला था, वे सारे फिर से ख़तरे में पड़ गए।
फ्रांसीसी, बेल्जियम और डच प्राधिकारियों ने हजारों जर्मन शरणार्थियों को नजरबंद कैद कर लिया, जिनमें दर्जनों सेंट लुइस के पूर्व यात्री भी शामिल थे। ब्रिटिश प्राधिकारियों ने सेंट लुईस के कुछ पूर्व यात्रियों को आइल ऑफ मैन में नजरबंद कैद कर लिया और अन्य को कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के कैम्प में कैद कर लिया। बेल्जियम और फ्रांस में रहने वाले कई लोगों को फ्रांसीसी नजरबंद कैद कैम्प में ले जाया गया।
विची फ्रांसीसी अधिकारियों द्वारा जर्मनी के साथ एक युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद, जिसके तहत फ्रांस को कब्जे वाले और खाली क्षेत्र में विभाजित कर दिया गया, विची फ्रांस के खाली क्षेत्र के शरणार्थी अभी भी कानूनी रूप से स्पेन और पुर्तगाल के माध्यम से संयुक्त राज्य अमेरिका या अन्यत्र देशों में पलायन कर सकते थे। यह संभावना अक्टूबर 1941 के बाद भी संभव थी, जब नाजियों ने उन क्षेत्रों से यहूदियों के पलायन पर प्रतिबंध लगा दिया था जिन पर उनका सीधा कब्जा था। सेंट लुईस के कुछ पूर्व यात्री का पलायन करना तब संभव हुआ जब उनके पूर्व पंजीकृत अमेरिकी आव्रजन कोटा प्रतीक्षा सूची के नंबरों पर कॉल किया गया। हालाँकि, ऐसी यात्रा की व्यवस्था करना नौकरशाही रूप से कठिन था और ऐसी यात्रा के लिए बहुत समय और धन की आवश्यकता होती थी। जिस किसी को भी संयुक्त राज्य अमेरिका जाना था, उन्हें मार्सिले में स्थित अमेरिकी वाणिज्य दूतावास से आव्रजन वीज़ा, फ्रांसीसी निकास वीज़ा, और स्पेन और पुर्तगाल दोनों सेट्रांजिट वीज़ा की आवश्यकता होती थी। ट्रांजिट वीज़ा केवल लिस्बन से जहाज पर यात्रा बुक करने के बाद ही प्राप्त किया जा सकता था। कुछ शरणार्थी, यहां तक कि फ्रांसीसी नजरबंद कैद कैम्प में बंद हजारों लोगों में से कुछ लोग पलायन करने में सफल रहे। लेकिन साल 1942 में ये अंतिम बचे हुए पलायन मार्ग उसी समय गायब हो गए, जब जर्मनों ने पश्चिमी यूरोप से यहूदियों को पूर्व में नाजी हत्या केंद्रों में भेजना शुरू कर दिया।
इस प्रकार, आखिर में, सेंट लुइस के पूर्व यात्रियों को नाजी कब्जे वाले पश्चिमी यूरोप में अन्य यहूदियों के समान अनुभव से गुजरना पड़ा था। उनमें से कई सारे लोगों की हत्या जर्मनों ने हत्या केंद्रों और यातना कैम्प में करी थी। अन्य लोग छिप गए या कई वर्षों तक जबरन मजदूरी करते रहे। कुछ लोग वहां से भागने में सफल रहे। सेलिगमैन और हरमन परिवारों के अलग-अलग भाग्य इन यात्रियों के विभिन्न अनुभवों को दर्शाते हैं।
यात्रियों का भाग्य
जब सेंट लुईस यूरोप लौट गया, तो सेलिगमैन परिवार (सिगफ्राइड, अल्मा और बेटी उर्सुला), जो मूल रूप से जर्मनी में हनोवर के पास रोनेनबर्ग में रहते थे, वे अपने अमेरिकी वीज़ा की प्रतीक्षा के लिए ब्रुसेल्स में बस गए थे। क्योंकि उन्हें काम करने की अनुमति नहीं थी, इसलिए उन्हें रिश्तेदारों और यहूदी शरणार्थी संगठनों के सहयोग पर निर्भर रहना पड़ता था। जब नाजियों ने बेल्जियम पर आक्रमण किया था, तब बेल्जियम पुलिस ने सिगफ्रीड को एक "शत्रु विदेशी" के रूप में गिरफ्तार कर लिया और उसे दक्षिणी फ्रांस ले जाया गया, वहां उसे लेस मिल्स नजरबंद कैद कैम्प में रखा गया था। उनकी पत्नी और बेटी उन्हें ढूंढने के लिए फ्रांस को चली गई। पेरिस में उन्हें फ्रांसीसी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और गुरस नजरबंद कैद कैम्प में भेज दिया, जहां वे अभाव और बीमारी की स्थिति में रहे। रेड क्रॉस के माध्यम से, अल्मा और उर्सुला को यह पता चला कि सिगफ्रीड को लेस मिल्स में नजरबंद कर लिया गया है। जुलाई 1941 में, अल्मा और उर्सुला को मार्सिले के एक कैम्प में स्थानांतरित कर दिया गया और विची अधिकारियों ने उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश और ट्रांजिट वीज़ा के लिए आवेदन करने की अनुमति दे दी। नवंबर में, सेलिगमैन परिवार फिर से एकजुट हुआ, उसके बाद उन्होंने फ्रांस छोड़ दिया और स्पेन और पुर्तगाल से यात्रा कर और फिर लिस्बन से प्रस्थान करके वे 3 दिसंबर 1941 को न्यूयॉर्क पहुंच गए। उनकी एक दूसरी बेटी एल्से, जो नीदरलैंड के रास्ते अमेरिका पहुंचने में कामयाब रही थी, वाशिंगटन डी.सी. में उनका इंतजार कर रही थी, जहां वह परिवार बस गया।
लेकिन हरमन परिवार उतना भाग्यशाली नहीं था। मोएनचेन-ग्लैडबैक के एक कपड़ा व्यापारी जूलियस हरमन्स को डचाऊ और बुचेनवाल्ड में कैद किया गया था। उनकी रिहाई के बाद उन्होंने सेंट लुईस में अपने लिए यात्रा बुक करवाई, लेकिन अपनी पत्नी ग्रेटे और बेटी हिल्डे के लिए टिकट और परमिट के लिए उनके पास पैसे नहीं बचे थे। वे दोनों जर्मनी में ही रहे। जब क्यूबा से लौटते हुए सेंट लुईस जहाज एंटवर्प में रुका, तब जूलियस फ्रांस चले गए थे और वे इस उम्मीद में थे कि उनका परिवार वहां उनके साथ आ सकेगा। जूलियस को फ्रांसीसियों द्वारा "शत्रु विदेशी" के रूप में नजरबंद किए जाने के बाद अप्रैल 1940 में रिहा कर दिया गया, लेकिन जर्मन के आक्रमण के तुरंत बाद उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। अंत में, उन्हें स्पेन की सीमा के पास स्थित सेंट-साइप्रियन नजरबंदी कैम्प में ले जाया गया। बाद में गुर्स और लेस मिल्स में स्थानांतरित होने के कारण, अब बीमार पड़े जूलियस मार्सिले में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास से आवश्यक आव्रजन कागजात और वीजा प्राप्त करने में असफल रहे।
उसके बाद जूलियस को, 11 अगस्त 1942 के दिन फ्रांसीसी अधिकारियों ने लेस मिल्स से पेरिस के निकट एक ट्रांजिट कैम्प ड्रैन्सी तक प्रथम कैदी परिवहन के माध्यम से भेजा। तीन दिन बाद, जर्मनों ने उन्हें जर्मन-कब्जे वाले पोलैंड के ऑशविट्ज़-बिरकेनौ कैम्प में निर्वासित कर दिया, वहां उनकी मृत्यु हो गई। ग्रेटे और हिल्डे हरमन्स को,11 दिसम्बर 1941 के दिन जर्मनों ने जर्मनी से लातविया के रीगा यहूदी बस्ती में निर्वासित कर दिया। वे युद्ध में जीवित बचे थे या नहीं इसकी कोई जानकारी नहीं है।