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युजनिक्स

यूजीनिक्स के सिद्धांतों, या जर्मन संदर्भ में "जातीय स्वच्छता" ने नाज़ी जर्मनी की कई उत्पीड़नकारी नीतियों को साकार किया।

मुख्य तथ्य

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    यूजीनिक्स, या "रेसियल हाइजीन", उन्नीसवीं सदी अंत और बीसवीं सदी की शुरुआत का वैज्ञानिक आंदोलन था।

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    हालांकि, आज यूजीनिक्स को छद्म विज्ञान माना जा सकता है, लेकिन बीसवीं सदी के शुरूआती दशकों में इसे अत्याधुनिक विज्ञान के तौर पर देखा जाता था। यूजीनिक्स समाज ज़्यादातर औद्योगिक दुनिया में, ख़ासतौर संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन और जर्मनी में प्रसारित हो गए।

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    यूजीनिक्स ने नाज़ी अनिवार्य नसबंदी नीति के लिए आधार प्रदान किया और गुप्त रूप से "इच्छामृत्यु" (टी4) कार्यक्रम में संस्थागत विकलांगों की हत्या को रेखांकित किया।

पृष्ठभूमि

नाज़ी उत्पीड़नकारी नीतियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा नस्लीय स्वच्छता या यूजीनिक्स के सिद्धांतों से उत्पन्न हुआ था। ऐसे सिद्धांत बीसवीं सदी के पहले दशकों में अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय में प्रचलित थे। शब्द "यूजीनिक्स" (ग्रीक से "अच्छे जन्म या स्टॉक" के लिए) 1883 में अंग्रेज़ी प्रकृतिवादी सर फ्रांसिस गैल्टन की तरफ से तैयार किया गया था। इस शब्द का जर्मन समकक्ष, “जातीय स्वच्छता” (रसेनहाइजीन), पहली बार 1895 में जर्मन अर्थशास्त्री अल्फ्रेड प्लोएट्ज़ द्वारा इस्तेमाल किया गया था। आंदोलन की आस्था प्रणाली का मूल यह सिद्धांत था कि मानव अनुवांशिकता निर्धारित और अपरिवर्तनीय थी।

यूजीनिक सिद्धांत

यूजीनिस्टों के लिए, आधुनिक समाज की सामाजिक दुर्बलताएं - अपराध, मानसिक बीमारी, मद्यपान, और गरीबी तक - वंशानुगत कारकों से उपजी हैं। यूजीनिक सिद्धांत के समर्थक यह मानते थे कि इन समस्याओं की वजह पर्यावरणीय कारक नहीं थे, जैसे कि यूरोप और उत्तरी अमेरिका में 19वीं सदी के अंत में तेज़ी से औद्योगीकरण और शहरीकरण। बल्कि, उन्होंने यूजीनिक्स के विज्ञान को बढ़ावा दिया ताकि वे जो उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य और नैतिकता में गिरावट का सामना कर सकें।

यूजीनिस्टों के तीन प्राथमिक उद्देश्य थे। सर्वप्रथम, उन्होंने सामाजिक बुराइयों में योगदान करने वाले "वंशानुगत" लक्षणों की खोज की। दूसरी बात, उनका लक्ष्य इन समस्याओं का जैविक समाधान को तैयार करना था। आखिरकार, यूजीनिस्टों ने उनसे निपटने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों के लिए अभियान चलाने की मांग की। 

यूजीनिक सिद्धांतों का अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव

यूजीनिक्स को इसका सबसे कट्टर व्याख्यान जर्मनी में मिला, लेकिन इसका प्रभाव सिर्फ उस देश तक ही सीमित नहीं था। उन्नीसवीं सदी के आखिर में और बीसवीं सदी की शुरुआत में, यूजीनिक समाज का उदय अधिकांश औद्योगिक दुनिया में हुआ। पश्चिमी यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में, इस आंदोलन को 1910 और 1920 के दशक में अपनाया गया। उन स्थानों में अधिकतर समर्थक अमेरिकी प्रवक्ता चार्ल्स डेवेनपोर्ट के उद्देश्यों का समर्थन करते थे। डेवनपोर्ट ने यूजीनिक्स को "बेहतर प्रजनन के ज़रिए मानव जाति को बेहतर बनाने के लिए समर्पित विज्ञान" के रूप में विकसित करने की हिमायत की। इसके समर्थकों ने "सकारात्मक" यूजीनिक प्रयासों का पक्ष लिया। उन्होंने ऐसी सार्वजनिक नीतियों की हिमायत की जो शारीरिक, जातिगत, और अनुवांशिक रूप से "स्वस्थ" व्यक्तियों को बनाए रखने की दिशा में तैयार की गई थीं। उदाहरण के तौर पर, उन्होंने "पात्र" परिवारों को वैवाहिक सलाह, मातृत्व प्रशिक्षण और सामाजिक कल्याण देने की मांग की। यह करने में, यूजीनिक्स समर्थकों को "बेहतर" परिवारों को प्रजनन हेतु प्रेरित करने की आशा थी।

समाज के "उत्पादक" सदस्यों के समर्थन में किए गए प्रयासों के नकारात्मक नतीजे सामने आए। उदाहरण के लिए, आर्थिक संसाधनों को "कम मूल्यवान" से "योग्य" तक पुनर्निर्देशित करने के प्रयास किए गए थे। यूजीनिस्टों ने मानसिक तौर पर बीमार और संज्ञानात्मक रूप से संवेदनशील लोगों पर भी निशाना साधा। जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका में यूजीनिक्स समुदाय के कई सदस्यों ने सीमित मानसिक या सामाजिक क्षमता रखने वाले समाज के वर्गों को अधिकारहीन करने की रणनीतियों को प्रोत्साहन दिया। उन्होंने स्वैच्छिक या अनिवार्य नसबंदी के ज़रिए उनके प्रजनन को सीमित करने को प्रोत्साहन दिया। यूजीनिस्टों ने तर्क दिया कि क्षीण क्षमता और नैतिकता, अनैतिकता और अपराध प्रत्यक्ष रूप से संबंधित हैं।

जर्मनी और अमेरिका में यूजीनिक समुदाय के सदस्य भी नस्लीय तौर पर "हीन" और गरीब लोगों को भयावह मानते थे। यूजीनिस्टों ने कहा कि इस प्रकार के समूह उन्हें विरासत में मिली कमियों से कलंकित थे। उनका मानना​ था कि इन समूहों ने राष्ट्रीय समुदाय को खतरे में डाल दिया है और समाज पर आर्थिक बोझ डाला है।

अधिकतर यूजीनिस्टों के "वैज्ञानिक तौर पर निकाले गए" निष्कर्षों ने लोकप्रिय पूर्वाग्रह को शामिल करने के अतिरिक्त कुछ नहीं किया। हालांकि, यूजीनिस्ट अपने प्रयासों में “शोध” और “सिद्धांत” को सम्मिलित करते हुए, अपनी मान्यताओं को वैज्ञानिक तथ्य के तौर पर पेश कर सके।

नाज़ी नस्लीय स्वच्छता

1933 के बाद जर्मन यूजीनिक्स ने अलग और भयावह मार्ग का पालन किया। 1914 से पहले, जर्मन नस्लीय स्वच्छता आंदोलन उनके ब्रिटिश और अमेरिकी समकक्षों से कुछ ख़ास अलग नहीं था। प्रथम विश्व युद्ध के तुरंत बाद जर्मन यूजीनिक्स समुदाय और ज़्यादा कट्टरपंथी बन गया। युद्ध की वजह से भीषण नरसंहार हुआ। इसके अतिरिक्त, प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के बीच के वर्षों में जर्मनी को आर्थिक तबाही देखनी पड़ी। इन कारकों की वजह से अनुवांशिक रूप से "मूल्यवान" और "अपरिचित" माने जाने वाले लोगों के बीच विभाजन बढ़ गया। उदाहरण के तौर पर, कुछ लोग मानते थे कि अनुवांशिक रूप से "मूल्यवान" जर्मन युद्धभूमि पर मर रहे थे, जबकि "अनुत्पादक" जेलों, अस्पतालों और कल्याण सुविधाओं में संस्थागत रूप से थे, वे आड़ में बचे हुए थे। ऐसे तर्क वाइमर और प्रारंभिक नाज़ी युग में यूजीनिक नसबंदी और विकलांगों और संस्थागत लोगों के लिए सामाजिक सेवाओं में कमी को उचित ठहराने के माध्यम के तौर पर दोबारा सामने आए।

1933 तक, नस्लीय स्वच्छता के सिद्धांत पेशेवर और सार्वजनिक मानसिकता में समाहित थे। इन सिद्धांतों पर एडॉल्फ हिटलर और उनके कई अनुयायियों की सोच पर असर डाला। उन्होंने ऐसी विचारधारा को अपनाया जिसने नस्लीय यहूदी विरोधी भावना को यूजीनिक सिद्धांत के साथ संयोजित कर दिया। यह करने में, हिटलर शासन ने अपने सबसे पुख्ता और कट्टरपंथी स्वरूपों में यूजेनिक उपायों के कार्यान्वयन के लिए संदर्भ और मौलिक रूप प्रदान किया।

नस्लीय स्वच्छता ने नाज़ी जर्मनी की कई जातीय नीतियों को साकार किया। चिकित्सा पेशेवरों ने इनमें से कई नीतियों को लागू किया और नाज़िओं की ओर से परिभाषित व्यक्तियों को "वंशानुगत तौर पर बीमार" के रूप में परिभाषित किया: जो मानसिक, शारीरिक या सामाजिक विकलांगता से ग्रस्त थे। नाज़िओं ने इस बात का दावा किया कि इन व्यक्तियों ने समाज और राज्य पर अनुवांशिक और वित्तीय दोनों प्रकार का बोझ डाला।

नाज़ी अधिकारियों ने ऐसे व्यक्तियों के प्रजनन क्षमताओं में बाधा डालने का फैसला लिया जिन्हें “अनुवांशिक तौर पर ग्रस्त” माना गया था। उनके शुरूआती यूजीनिक उपायों में से वंशानुगत रोगों वाली संतानों की रोकथाम के लिए 1933 का कानून ("आनुवंशिक स्वास्थ्य कानून") था। कानून ने सिज़ोफ्रेनिया और "वंशानुगत दुर्बलता" के साथ-साथ नौ विकलांगताओं और विकारों के लिए बलपूर्वक नसबंदी को अनिवार्य किया। कानून के नतीजन, आखिरकार नाज़ी जर्मनी में 400,000 जर्मनों की नसबंदी कर दी गई। इसके अतिरिक्त, यूजीनिक मान्यताओं ने जर्मनी के 1935 वैवाहिक स्वच्छता कानून को साकार किया। इस कानून ने "रोगग्रस्त, निम्न या खतरनाक अनुवांशिक सामग्री" वाले व्यक्तियों के "स्वस्थ" जर्मन "आर्यों" से विवाह पर रोक लगा दी।

निष्कर्ष

यूजीनिक सिद्धांत ने "इच्छामृत्यु" (T4) कार्यक्रम को आधारशिला प्रदान की। इस अप्रकट कार्यक्रम ने पूरे जर्मन री के संस्थानों में रहने वाले विकलांग मरीजों को हत्या के लिए निशाना बनाया। अनुमानित 250,000 मरीज़, जिनमें से अधिकतर जर्मन "आर्यन" थे, इस गुप्त हत्या अभियान का शिकार बने।

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