
नाज़ी नस्लवाद: अवलोकन
नस्लवाद ने नाज़ी विचारधारा और नीतियों को बढ़ावा दिया। नाज़ियों के मुताबिक दुनिया प्रतिस्पर्धी हीन और उच्च नस्ल में विभाजित हो गई थी, जिनमें से हर एक अपने अस्तित्व और प्रभुत्व के लिए संघर्ष कर रहा था। नाज़ियों का मानना था कि यहूदी कोई धार्मिक संप्रदाय नहीं है, बल्कि एक खतरनाक गैर-यूरोपीय “नस्ल” है। नाजियों के नस्लवाद ने काफी बड़े पैमाने पर सामूहिक हत्याएं कीं।
मुख्य तथ्य
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नस्लवाद करने वाले मानते थे कि जन्मजात, वंशानुगत विशेषताएं जैविक रूप से मानव व्यवहार को निर्धारित करती हैं। बीसवीं सदी की शुरुआत में, नस्ल के बारे में ऐसे विचार दुनिया के कई हिस्सों में व्यापक रूप से स्वीकार किए गए थे। वास्तव में, नस्ल जैविक रूप पर आधारित नहीं होती है, यह समूहों का सांस्कृतिक वर्गीकरण होती है।
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नाजियों के नस्ल के बारे में सिद्धांतों के अनुसार, जर्मन लोगों में और अन्य यूरोपीय लोगों में शारीरिक और मानसिक गुणों को श्रेष्ठ माना जाता था। वे यूरोपीय लोगों को "आर्य" मानते थे, जो प्राचीन इंडो-यूरोपीय लोगों के वंशज थे, जो पूरे यूरोपीय महाद्वीप के साथ-साथ ईरान और भारत में भी बस गए थे।
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नस्लीय यहूदी विरोध, झूठे वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित यहूदियों के प्रति पूर्वधारणा या घृणा है। नस्लवाद का यह पहलू हमेशा से नाज़ीवाद का अभिन्न अंग था।
नस्लवाद करने वाले लोगों का मानना था कि मानव व्यवहार को जन्मजात, वंशानुगत विशेषताएं जैविक रूप से निर्धारित करती हैं।
नस्लवाद की धारणा इस बात पर जोर देती है कि रक्त ही देशीय-जातीय पहचान निर्धारित करता है। नस्लवादी फ्रेमवर्क के अंतर्गत, किसी मनुष्य का मूल्य उसकी वैयक्तिकता से नहीं, बल्कि तथाकथित "नस्लीय सामूहिक देश" की सदस्यता से निर्धारित होता है। वैज्ञानिकों सहित कई बुद्धिजीवियों ने नस्लवादी सोच को छद्मवैज्ञानिक समर्थन दिया है। ह्यूस्टन स्टीवर्ट चेम्बरलेन जैसे उन्नीसवीं सदी के नस्लवादी विचारकों ने एडोल्फ हिटलर की पीढ़ी के कई लोगों पर नस्लवादी विचारधारा का महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।
नस्लवाद, जिसमें नस्लीय यहूदी-विरोध (यहूदियों के प्रति झूठे जैविक सिद्धांतों पर आधारित पूर्वधारणा या घृणा) शामिल था, यह हमेशा से जर्मन राष्ट्रीय समाजवाद (नाज़ी वाद) का अभिन्न अंग रहा था।
नाज़ियों ने समस्त मानव इतिहास को विभिन्न जातियों के लोगों के बीच जैविक रूप से निर्धारित संघर्ष का इतिहास माना था। नाजियों ने मार्क्सवाद, साम्यवाद, शांतिवाद और अंतर्राष्ट्रीयवाद जैसे राजनीतिक आंदोलनों को राष्ट्रवाद विरोधी बताया और ये आंदोलन खतरनाक, नस्लीय आधारित यहूदी बौद्धिकता को प्रतिबिंबित करते है ऐसा दर्शाया।
साल 1931 में, SS (Schutzstaffel; नाज़ी राज्य का कुलीन रक्षक) ने नस्ल संबंधी "अनुसंधान" करने और SS के सदस्यों के लिए संभावित जीवनसाथियों की उपयुक्तता निर्धारित करने के लिए एक नस्ल और सेटलमेंट ऑफिस की स्थापना की। नाज़ियों के सत्ता में आने के बाद, उन्होंने 1935 में नूर्नबर्ग नस्ल कानून पारित किया, जिसने यहूदी धर्म की कथित जैविक परिभाषा को संहिताबद्ध बताया।

नाज़ी नस्लवादी लोगों ने तथाकथित मास्टर नस्ल में मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार लोगों को आनुवंशिक धब्बा माना और जब वे प्रजनन करते थे तो उन्हें आर्यन नस्ल की शुद्धता के लिए जैविक खतरा माना था। साल 1939 के अंतिम छह महीनों के दौरान सावधानीपूर्वक योजना बनाने और डेटा कलेक्ट करने के बाद, जर्मन चिकित्सकों ने पूरे जर्मनी में संस्थानों में रहने वाले विकलांग निवासियों की हत्या करना शुरू कर दिया, जिसे उन्होंने "इच्छा-मृत्यु" नाम दिया।
नाज़ी नस्ल संबंधी सिद्धांतों के अनुसार, जर्मन और अन्य उत्तरी यूरोपीय लोग "आर्य" थे, जो की एक श्रेष्ठ नस्ल थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, ना नाज़ी जी चिकित्सकों ने आर्यन श्रेष्ठता और गैर-आर्यन हीनता के भौतिक प्रमाण की पहचान दिखाने के लिए फर्जी चिकित्सा प्रयोग किए। इन प्रयोगों के दौरान अनगिनत गैर-आर्य कैदियों की हत्या करने के बावजूद, नाजियों को मनुष्यों के बीच जैविक नस्लीय अंतर के अपने सिद्धांतों के लिए कोई सबूत नहीं मिला था।
सत्ता में आने के बाद, नाज़ियों ने नस्लीय कानून और नीतियां लागू कीं, जिससे यहूदियों, अश्वेत (काले रंग के) लोगों और रोमा (जिप्सी) को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, नाज़ी नेतृत्व ने पोलैंड और सोवियत संघ के कब्जे वाले पूर्वी क्षेत्रों में "जातीय घर से सफाई" नामक अभियान शुरू किया। इस नीति में तथाकथित दुश्मन "जातियों" की हत्या करना और उनका विनाश करना शामिल था, जिसमें यूरोपीय यहूदियों का नरसंहार और स्लाव लोगों के लीडरशिप का विनाश भी शामिल था।
नाजियों के नस्लवाद ने काफी बड़े पैमाने पर सामूहिक हत्याएं की थी।