'A Dangerous Lie: The Protocols of the Elders of Zion' opened in the Gonda Education Center at the United States Holocaust Memorial ...

प्रोटोकॉल ऑफ द एल्डर्स ऑफ ज़ायोन

प्रोटोकॉल ऑफ द एल्डर्स ऑफ ज़ायोन आधुनिक समय का सबसे बदनाम और वृहद तौर पर वितरित यहूदी विरोधी प्रकाशन है इसमें यहूदियों के बारे में झूठी चीज़ें दी गई है, उससे उन्हें बार-बार बदनाम किया गया है, यह आज भी, खासकर इंटरनेट पर काफी फैले हुए हैं। इस प्रोटोकॉल का इस्तेमाल करने वाले सभी व्यक्तियों और समूहों के सामान्य उद्देश्य सम्बद्ध हैं: यहूदियों के प्रति घृणा का प्रसार।

"यदि कभी कोई लेखन बड़े पैमाने पर घृणा उत्पन्न कर सकता है, तो वह यही है। . . . यह पुस्तक झूठ की बुनियाद पर और बदनाम करने के लिए है।"
-एली विजेल, नोबेल शांति पुरस्कार विजेता

प्रोटोकॉल ऑफ द एल्डर्स ऑफ ज़ायोन आधुनिक समय का सबसे कुख्यात और वृहद तौर पर वितरित यहूदी विरोधी प्रकाशन है। इसमें यहूदियों के बारे में झूठी चीज़ें दी गई हैं, उससे उन्हें बार-बार बदनाम किया गया है, यह आज भी, खासकर इंटरनेट पर काफी फैले हुए हैं। इस प्रोटोकॉल का इस्तेमाल करने वाले सभी व्यक्तियों और समूहों के सामान्य उद्देश्य सम्बद्ध हैं: यहूदियों के प्रति घृणा का प्रसार।

 प्रोटोकॉल पूर्णतया काल्पनिक है, जो यहूदियों को इरादतन अलग-अलग प्रकार की बुरी चीज़ों के लिए दोषी ठहराने के लिए लिखा गया है। इसके वितरणकर्ता दावा करते हैं कि इसमें विश्व भर में प्रभुत्व ज़माने के लिए यहूदी साज़िश को दस्तावेज़ीकृत किया गया है। साज़िशकर्ता और इसके कथित नेता, तथाकथित एल्डर्स ऑफ ज़ायोन, कभी थे ही नहीं।

झूठ की उत्पत्ति

Alfred Rosenberg's 1923 commentary on the Protocols (this copy is the fourth edition) reinforced Nazi anti-Jewish ideology.

प्रोटोकॉल पर की गई अल्फ्रेड रोसेनबर्ग की 1923 की टिप्पणी ने सज़ा यहूदी विरोधी विचारधारा को बल दिया। यह चौथा संस्करण है। 1933 में म्यूनिख में प्रकाशित।

क्रेडिट:
  • US Holocaust Memorial Museum

1903 में प्रोटोकॉल्स ऑफ द एल्डर्स ऑफ ज़ायोन को रूसी अखबार जनाम्या (द बैनर) में क्रमबद्ध किया गया था। प्रोटोकॉल का संस्करण कायम है और इसका अनुवाद दर्जनों भाषाओं में किया गया है, हालांकि, पहली बार 1905 में रूस में द ग्रेट इन द स्मॉल के एक परिशिष्ट के रूप में प्रकाशित किया गया था: रूसी लेखक और रहस्यवादी सर्गेई निलस द्वारा रचित द कमिंग ऑफ़ द एंटी-क्राइस्ट एंड द रूल ऑफ़ सेटन ऑन अर्थ

हालांकि, प्रोटोकॉल की सटीक उत्पत्ति की जानकारी नहीं है, इसका उद्देश्य यहूदियों को राज्य के खिलाफ साज़िश करने वालों के तौर पर दिखाना था। 24 अध्यायों या प्रोटोकॉल में, कथित तौर पर यहूदी नेताओं के मिनट्स ऑफ मीटिंग में, प्रोटोकॉल अर्थव्यवस्था में हेराफेरी करके, मीडिया पर काबू करके और धार्मिक संघर्ष को बढ़ावा देकर दुनिया पर शासन करने के लिए यहूदियों की "गुप्त योजनाओं" का "वर्णन" किया गया है।

1917 की रूसी क्रांति के बाद, पश्चिम में बोल्शेविक विरोधी प्रवासी प्रोटोकॉल लाए। इसके तुरंत बाद, पूरे यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और जापान में संस्करण का प्रसार हुआ। पहली बार 1920 के दशक में अरबी अनुवाद सामने आया।

1920 की शुरुआत में, ऑटो मैग्नेट हेनरी फोर्ड के समाचार पत्र, द डियरबॉर्न इंडिपेंडेंट ने प्रोटोकॉल पर आधारित लेखों की श्रृंखला का प्रकाशन किया। यह श्रृंखला द इंटरनेशनल ज्यू, पुस्तक में शामिल है, जिसका अनुवाद कम से कम 16 भाषाओं में किया गया। एडॉल्फ हिटलर और जोसेफ गोएबल्स, जो बाद में प्रचार मंत्रालय प्रमुख बने, दोनों ने फोर्ड और द इंटरनेशनल ज्यू की तारीफ की।

धोखाधड़ी का प्रकटीकरण

1921 में, लंदन टाइम्स ने निर्णायक साक्ष्य पेश किया कि प्रोटोकॉल“" बेढ़ंग से की गई साहित्यिक चोरी" थी। टाइम्स ने पुष्टि की कि प्रोटोकॉल बड़े पैमाने पर फ्रांसीसी राजनीतिक व्यंग्य से कॉपी किए गए थे, जिसमें कभी भी यहूदियों के बारे नहीं बताया गया था - मौरिस जोली का डायलॉग इन हेल बिटवीन मैकियावेली एंड मोंटेस्क्यू (1864)। अन्य जांचों से पता चलता है कि प्रशियाई उपन्यास, हरमन गोएडशे के बियारिट्ज़ (1868), के अध्याय ने भी प्रोटोकॉल को प्रेरणा दी।

नाज़ी युग

1920 के दशक की शुरुआत में, जब हिटलर अपना वैश्विक नज़रिया तैयार कर रहा था, तब नाज़ी पार्टी के विचारशील विचारक आल्फ्रेड रोजेंबर्ग ने हिटलर के समक्ष प्रोटोकॉल्सकी पेशकश की। हिटलर ने शुरुआत में दिए गए अपने कुछ राजनीतिक भाषणों में प्रोटोकॉल के बारे में बताया और, अपने पूरे करियर के दौरान, उसने इस मिथ्या का लाभ उठाया कि "यहूदी-बोल्शेविस्ट" दुनिया पर काबू पाने की साज़िश गढ़ रहे थे।

1920 और 1930 के दौरान, सिय्योन के बुजुर्गों के प्रोटोकॉल ने नाज़ियों के प्रचार शस्त्रागार में एक अहम भूमिका अदा की। 1919 और 1939 के बीच नाज़ी पार्टी ने प्रोटोकॉल के कम से कम 23 संस्करण प्रकाशित किए। नाज़ियों द्वारा 1933 में सत्ता पर कब्ज़े के बाद, कुछ स्कूलों ने छात्रों को शिक्षा देने के लिए प्रोटोकॉल का इस्तेमाल किया।

धोखाधड़ी का प्रकटीकरण

1935 में, स्विस अदालत द्वारा दो नाज़ी नेताओं पर स्विट्जरलैंड के बर्न में प्रोटोकॉल के जर्मन-भाषा संस्करण को प्रसारित करने के लिए जुर्माना लगाया गया। न्यायाधीश ने मुकदमे की अध्यक्षता करते हुए प्रोटोकॉल को अपमानजनक," "स्पष्ट रूप से जालसाज़ी," और "हास्यास्पद निरर्थक" घोषित किया।

1964 में अमेरिकी सीनेट ने एक रिपोर्ट जारी करते हुएप्रोटोकॉल को "मनगढ़ंत" घोषित किया। सीनेट ने प्रोटोकॉल की सामग्री को "बेमतलब" बताया और उन लोगों की आलोचना की जिन्होंने हिटलर जैसी प्रचार तकनीक इस्तेमाल करते हुए प्रोटोकॉल को "बेचा" था।

1993 में, रूस की एक अदालत ने निर्णय लिया कि पाम्याट, जोकि दूर-दक्षिण राष्ट्रवादी संगठन, ने प्रोटोकॉल.को प्रकाशित करके यहूदियों के विरोध में काम किया था।

 प्रोटोकॉल को एक धोखाधड़ी के तौर पर बार-बार जहिर किए जाने के बावजूद, यह बीते एक सौ वर्षों का सबसे प्रभावशाली यहूदी विरोधी लेख है और यह विभिन्न यहूदी विरोधी व्यक्तियों और समूहों को प्रभावित करता है।

आज का प्रोटोकॉल

This 2005 Syrian edition of the Protocols claims that the terrorist attacks of September 11, 2001, were orchestrated by a Zionist ...

प्रोटोकॉल्स ऑफ द एल्डर्स ऑफ  ज़ायोन के 2005 के सीरियाई संस्करण में इस बात का दावा किया गया है कि ज़ायोनी साज़िश के तहत 11 सितंबर, 2001 के आतंकवादी हमले किए गए थे। अंतिम अध्याय संभावित तौर पर इज़राइल राज्य का अंत होने का पूर्वानुमान देता है। दमिश्क, सीरिया, 2005 में प्रकाशित। इज़राइल दूतावास का उपहार।

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  • US Holocaust Memorial Museum

अमेरिकी विदेश विभाग की "वैश्विक यहूदी-विरोध पर रिपोर्ट" (2004) के अनुसार,

"स्पष्ट रूप से प्रोटोकॉल का [उद्देश्य] यहूदियों और इज़राइल के प्रति नफरत भड़काना है।"

संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में, नव-नाज़ी, श्वेत वर्चस्ववादी और यहूदी नरसंहार से इनकार करने वाले प्रोटोकॉल.का समर्थन और प्रसार करते हैं। विश्व भर में प्रोटोकॉल पर आधारित पुस्तकें उपलब्ध हैं, यहां तक कि जापान जैसे उन देशों में भी जहां यहूदियों की संख्या काफी कम है।

विश्व भर में अरब और इस्लामी कई स्कूली पाठ्यपुस्तकों में प्रोटोकॉल तथ्य के तौर पर पढ़ाया जाता है। असंख्यों राजनीतिक भाषण, संपादकीय लेख और यहां तक कि बच्चों के कार्टून भी प्रोटोकॉल.से मिले हैं। 2002 में, मिस्र की सरकार-प्रायोजित टेलीविजन ने प्रोटोकॉल पर एक सीरीज़ प्रसारित की जिसकी निंदा अमेरिकी राज्य विभाग द्वारा की गई। फिलिस्तीनी संगठन हमास इज़राइली नागरिकों के खिलाफ अपने आतंकवाद को उचित बताने के लिए प्रोटोकॉल से प्रेरणा लेता है।

इंटरनेट ने प्रभावशाली तरीके से प्रोटोकॉल.तक पहुंच में वृद्धि की है। भले ही कई वेबसाइट प्रोटोकॉल को धोखाधड़ी के तौर पर प्रकट करती हैं, इंटरनेट ने यहूदियों के प्रति नफरत फैलाने के लिए प्रोटोकॉल का इस्तेमाल आसान बना दिया। आज, सामान्य तौर पर इंटरनेट खोज से लाखों की संख्या में साइटें मिलती हैं जो प्रोटोकॉल का प्रसार, बिक्री या उस पर तर्क-वितर्क करती हैं या उन्हें धोखाधड़ी के तौर पर प्रकट करती हैं।

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