After the occupation of Odessa, Ukrainian Jews wait to register.

ओडेसा में होलोकॉस्ट

अक्टूबर 1941 में नाजी जर्मनी के सहयोगी रोमानिया ने ओडेसा में यहूदियों की आपराधिक सामूहिक हत्याएं कीं। ओडेसा और यूक्रेन में हुए होलोकॉस्ट के बारे में और जानें।

मुख्य तथ्य

  • 1

    दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ उस संध्या तक, ओडेसा में लगभग 600,000 की बहुजातीय आबादी थी उसमें से यहूदी लोगों की आबादी संख्या एक तिहाई थी। 

  • 2

    रोमानियाई अधिकारियों ने 16 अक्टूबर, 1941 को ओडेसा पर कब्ज़ा कर लिया। तुरंत बाद उन्होंने वहां यहूदियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था। यहूदियों को दुर्व्यवहार, हिंसा, हिरासत, जबरन मजदूरी, निर्वासन और सामूहिक हत्याओं का शिकार होना पड़ा

  • 3

    ओडेसा पर कब्जा करने के एक साल के अंदर, युद्ध के पहले का यहूदी समुदाय को खत्म कर दिया गया था।

16 अक्टूबर, 1941 को जर्मन और रोमानियाई सैनिकों द्वारा शहर पर कब्जा करने के बाद ओडेसा में होलोकॉस्ट शुरू हुआ था। ओडेसा और रोमानियाई द्वारा कब्जा किए हुए यूक्रेन के अन्य हिस्सों में, रोमानियाई की यहूदी विरोधी नीतियां तेजी से और अराजक रूप से विकसित हुईं। ओडेसा में यहूदियों की सामूहिक हत्या को अंजाम देने में कई सारे समूहों का हाथ था। रोमानियाई, जर्मन और स्वदेशी सहयोगकर्ता (जिसमें रूसी, यूक्रेनियन और विशेष रूप से उल्लेखनीय स्थानीय जातीय जर्मन आबादी के लोग शामिल है) सभी शामिल थे।

कब्जा करना शुरू करने के एक हफ्ते से भी कम समय में, रोमानियाई अधिकारियों ने नरसंहार शुरू किया, जिसमें ओडेसा और उसके उपनगरों में कम से कम 25,000 से 30,000 यहूदियों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। यह नरसंहार कई दिनों तक चला। इसके तुरंत बाद, रोमानियाई लोगों ने लगभग 25,000 से 30,000 यहूदियों को ओडेसा से बोहदानिव्का (रोमानियाई में उसे बोग्दानोविक कहा जाता है) गांव के एक कैंप तक मौत की यात्रा पर भेजा। कैंप में पहुंचने के छह से आठ हफ्तों के अंदर लगभग सभी यहूदियों की हत्या कर दी गई थी। 

दिसंबर 1941 में रोमानियाई अधिकारियों ने यहूदी-मुक्त ओडेसा कराने का फैसला किया। साल 1942 के पहले छह महीनो के दौरान, उन्होंने ओडेसा में बचे यहूदियों को ग्रामीण क्षेत्रों में नजरबंदी करने वाले जगह पर निर्वासित कर दिया। ज्यादातर लोगों को वहां सामूहिक गोलीबारी की कार्रवाई करके मार दिया गया। एक वर्ष से भी कम समय में, ओडेसा का जीवंत यहूदी समुदाय लगभग खत्म हो गया था। 

ओडेसा के होलोकॉस्ट में बहुत कम संख्या में यहूदी बच पाए, या तो जबरन मजदूर बनकर या छिपकर।  

दुसरे विश्व युद्ध से पहले ओडेसा का यहूदी समुदाय

होलोकॉस्ट होने के दशकों पहले ओडेसा के यहूदी समुदाय ने बड़े पैमाने पर बदलाव का अनुभव किया था। 

20वीं सदी की शुरुआत सालों में, इस बंदरगाह शहर में यहूदी समुदाय पूर्वी यूरोप में सबसे बड़े और सबसे जिंदादिल समुदायों में से एक था। ओडेसा यहूदी संस्कृति और शिक्षा का एक प्रसिद्ध केंद्र था। 

18वीं सदी के अंत में जब ओडेसा की स्थापना हुई थी, उसके बाद यहूदी ओडेसा की विविधतापूर्ण आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए थे ओडेसा रूसी साम्राज्य के उन कुछ प्रमुख शहरों में से एक था जहां पर यहूदियों को रहने की अनुमति थी। लेकिन जैसे रूसी साम्राज्य में सभी यहूदियों पर प्रतिबंध लगाए गए थे वैसे ही प्रतिबंध ओडेसा में रहने वाले यहूदियों पर भी थे। शाही अधिकारियों ने स्कूलों और विश्वविद्यालयों में यहूदियों के उपस्थिति प्रवेश को सीमित कर दिया था। इन प्रतिबंधों की वजह से यहूदी कौन सी नौकरियां कर सकते है कौन सी नहीं इस पर प्रभाव पड़ा। यहूदियों ने पोग्रोम्स सहित यहूदी-विरोधी हिंसा का भी अनुभव किया।

साल 1917 में जब रूसी साम्राज्य का पतन हुआ और साल 1922 में सोवियत यूनियन की स्थापना हुई, उसके बाद ओडेसा में यहूदियों के जीवन में कई भारी बदलाव आते रहे। तानाशाही के रूप में, सोवियत शासन ने अपने नागरिकों पर कड़ा नियंत्रण बनाए रखा था। इस नियंत्रण की वजह से अंतरजातीय हिंसा, जैसे यहूदियों और दुर्लभों के खिलाफ पोग्रोम्स किया गया। एक कम्युनिस्ट राज्य के रूप में, सोवियत शासन ने ऐसी नीतियां लागू कीं जो लोगों को उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर लक्षित करती थी। यह नीतियां यहूदियों सहित सभी सोवियत नागरिकों पर लागू होती की गई थी।  सोवियत शासन ने अमीर लोगों को तथाकथित वर्ग शत्रु के रूप में निशाना बनाया और उनके घरों और व्यवसायों को जब्त कर लिया। उन्हीं नीतियों से गरीब लोगों के लिए नए अवसर पैदा हुए। विशेष रूप से, यहूदियों के पास अब शिक्षा पाने की और करियर मार्ग चयन करने की सुविधा अनुपलब्ध थी। उनके सामाजिक और आर्थिक बैकग्राउंड के बावजूद, सभी सोवियत नागरिक-जिनमें यहूदी भी शामिल थे-उन सबका वास्तविक या कथित दुश्मनों के रूप में शासन द्वारा उत्पीड़न हुआ और यहां तक कि उनकी हत्या कर दी गई। 

सोवियत नीतियों ने ओडेसा के यहूदी समुदाय सहित सभी जातीय, राष्ट्रीय और धार्मिक समुदायों पर दबाव डाला। कम्युनिस्ट सिद्धांतों का पालन करते हुए सोवियत अधिकारियों ने कई धार्मिक संस्थानों को बंद कर दिया। यहूदियों के लिए, इसका मतलब था कि ज्यादातर आराधनालय और धार्मिक स्कूल बंद कर दिए गए थे, और रब्बी लोगों को शासन द्वारा निशाना बनाया गया था। सोवियत ने स्वतंत्र सांस्कृतिक और सामाजिक संगठनों को भी अपना निशाना बनाया था। इसी के चलते, यहूदी भाषा के पुस्तकालय, थिएटर और प्रकाशन गृह सहित कई यहूदी संस्थानों को बंद कराया गया। 1930 के दशक तक ओडेसा शहर में बड़ी यहूदी उपस्थिति के बावजूद वहां पर यहूदी सांप्रदायिक जीवन लगभग समाप्त हो गया था। अन्य जातीय और राष्ट्रीय समूहों पर इन्हीं नीतियों का समान प्रभाव पड़ा।  

1939 की सोवियत जनगणना के अनुसार, ओडेसा के लगभग एक तिहाई लोग (लगभग 200,000) यहूदी थे।  

दूसरा विश्व युद्ध ओडेसा में आया

दूसरा विश्व युद्ध साल 1939 सितंबर में यूरोप में शुरू हुआ लेकिन लगभग दो सालों तक ओडेसा में नहीं पंहुचा था। 22 जून, 1941 को नाजी जर्मनी और रोमानिया सहित उसके एक्सिस राष्ट्र सहयोगियों ने सोवियत यूनियन पर हमला कर दिया। इस मिलिटरी/सैन्य अभियान को ऑपरेशन बारब्रोसा के नाम से जाना गया। 

ओडेसा में युद्ध का पहला संकेत तब दिखा जब बेस्सारबिया से यहूदियों सहित अन्य शरणार्थियों का आगमन शुरू हुआ। ऑपरेशन बारब्रोसा के हिस्से के रूप में, रोमानियाई और जर्मन सैनिकों की टुकड़ियों ने बेस्सारबिया और उत्तरी बुकोविना के क्षेत्रों में तेजी से हमला किया। जून 1940 में अंतरयुद्ध वाले रोमानिया के इन क्षेत्रों को जबरन सोवियत यूनियन को सौंप दिया गया था। ऑपरेशन बारब्रोसा शुरू होने के तुरंत बाद, रोमानिया ने इन क्षेत्रों को फिर से अपने पास शामिल कर लिया। बेस्सारबिया क्षेत्र में, रोमानियाई अधिकारियों ने लगभग तुरंत ही भेदभावपूर्ण उपायों के साथ, यहूदी बस्तीकरण, निर्वासित करके और सामूहिक हत्या करना शुरू कर यहूदियों को निशाना बनाया। इन कारणों से कई बेस्सारबियन यहूदियों ने पूर्व की ओर पलायन करने का निर्णय लिया। जर्मन और रोमानियाई लोगों द्वारा ओडेसा पर कब्जा करने से पहले कुछ लोग ओडेसा चले गए थे। 

अगस्त 1941 की शुरुआत में, एक्सिस सेना ने ओडेसा को पूरी तरह से घेर लिया था। रोमानियाई सैनिकों ने शहर को घेर लिया। रेड आर्मी (सोवियत मिलिटरी/सेना) दो महीने से अधिक समय तक शहर की रक्षा करती रही। 

रोमानियाई लोगों ने 16 अक्टूबर, 1941 को ओडेसा पर कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने ओडेसा को ट्रांसनिस्ट्रिया गवर्नरेट की राजधानी के रूप में नामित किया। ट्रांसनिस्ट्रिया गवर्नरेट एक रोमानियाई प्रशासनिक यूनिट था जिसने डेनिस्टर और दक्षिणी बुह नदियों के बीच कब्जे वाले सोवियत यूक्रेन के हिस्से पर शासन किया था। गवर्नरेट का अस्तित्व 1941 और 1944 के बीच में था। जब रोमानियाई अधिकारियों ने इस क्षेत्र को नियंत्रित किया था, तब नाजी जर्मन यूनिट ओडेसा और आसपास के क्षेत्रों में मौजूद थी। 

घेराबंदी में ओडेसा के नागरिक  

इससे पहले कि सैनिकों की पहली टुकड़ी ओडेसा के बाहरी इलाके में पहुंचती, तब तक कुछ नागरिक मौका देखकर शहर से भाग गए थे। अन्य लोगों ने ओडेसा में रहने का फैसला किया, क्योंकि उनका मानना था कि सोवियत नियंत्रण बनाए रखेगा। फिर भी अन्य लोग व्यक्तिगत परिस्थितियों के कारण या सोवियत अधिकारियों से आधिकारिक अनुमति नहीं होने के कारण ओडेसा को छोड़कर नहीं जा पाए।

एक्सिस फोर्स द्वारा ओडेसा को घेरने के बाद, सभी नागरिक फंस गए थे। उनके लिए भागने और सोवियत द्वारा नियंत्रित मुख्यभूमि तक पहुंचने का एकमात्र रास्ता समंदर से होकर था। हालांकि, जर्मन हवाई हमलों ने निकासी जहाजों को नष्ट कर दिया, जिससे लोगों की भागने की क्षमता सीमित हो गई। 

अक्टूबर के मध्य में जब रोमानियाई लोगों ने ओडेसा पर कब्जा कर लिया, तब तक शहर में 70,000 से 120,000 यहूदी फंसे हुए थे। इनमें से कुछ स्थानीय यहूदी थे। अन्य लोग बेस्सारबिया के यहूदी शरणार्थी थे जो रोमानियाई लोगों की क्रूरता से भाग कर यहां ओडेसा आए थे और यहां शरणार्थी बन गए थे।

ओडेसा में होलोकॉस्ट की शुरुआत 

रोमानियाई अधिकारियों ने 16 अक्टूबर, 1941 को ओडेसा पर कब्जा कर लिया। अगले दिन, उन्होंने सभी यहूदियों को अपना पंजीकरण कराने का आदेश दिया। रोमानियाई लोगों ने तुरंत शहर और आसपास के इलाकों में यहूदियों को अपमानित करना, मनमानी हिंसा और हत्या का शिकार बनाना शुरू कर दिया। इसके अलावा, नाजियों का यहूदी विरोधी प्रचार पूरे शहर में फैल गया। 

18 अक्टूबर को, रोमानियाई अधिकारियों ने फोंटान्स्का स्ट्रीट पर स्थित जेल को और आसपास के क्षेत्र को यहूदियों के लिए हिरासत स्थल में बदल दिया। उन्होंने इस जेल को यहूदी घेटो/बस्ती या कैंप का नाम दिया। उन्होंने वहां बंद पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को केवल कुछ आवश्यक वस्तुओं को लाने की अनुमति दी। रोमानियन लोगों ने यहूदी पुरुषों से शहर में जबरन मजदूरी भी कराई।  

रोमानियाई अधिकारियों द्वारा यहूदियों का उत्पीड़न करना तेजी से बढ़ता गया। कुछ संस्मरणों के अनुसार और साथ ही सोवियत अधिकारियों की जांच के अनुसार, ओडेसा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हिंसा और मौत 19 अक्टूबर से ही शुरू हो गई थी।  यह स्पष्ट था, हालांकि, 22 अक्टूबर से हिंसा बढ़ना काफी बढ़ गया था। 

नरसंहार की प्रस्तावना: 22 अक्टूबर, 1941 का विस्फोट

22 अक्टूबर, 1941 की शाम को ओडेसा में रोमानियाई सैन्य मुख्यालय में एक विस्फोट हुआ। इस विस्फोट में 60 से अधिक लोग मारे गए। मरे हुए लोगों में शहर की कमान संभालने वाले रोमानियाई जनरल, रोमानियाई सेना के सदस्य, चार जर्मन नौसैनिक अधिकारी और सामान्य नागरिक शामिल थे। विस्फोट किसने किया था यह समझ नहीं आ रहा था।  हालांकि, रोमानियाई अधिकारियों ने यहूदियों और कम्युनिस्ट लोगों को इस विस्फोट का दोषी ठहराया। इन दोनों समूहों को अक्सर यहूदी विरोधी और कम्युनिस्ट विरोधी प्रचार में गलत तरीके से एक साथ जोड़ा जाता था। 

विस्फोट के जवाब में, रोमानियाई तानाशाह आयन एंटोनस्कु ने ओडेसा में यहूदियों और कम्युनिस्ट लोगों के खिलाफ क्रूर बदला लेने का आदेश दिया। रोमानियाई अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर परिणामी आपराधिक नरसंहारों को अंजाम दिया। इस नरसंहार में जर्मन SS सैनिकों की कुछ टुकड़ियों ने उनकी मदद की होगी। 

ओडेसा में यहूदियों का नरसंहार: 22-26 अक्टूबर, 1941 

22 अक्टूबर, 1941 को जो विस्फोट हुआ था वह यहूदी विरोधी हिंसा में नाटकीय और तत्काल तेजी लाने का उत्प्रेरक था। रोमानियाई लोगों ने उसी शाम यहूदियों और कम्युनिस्ट लोगों को फांसी पर लटकाना शुरू कर दिया। सार्वजनिक लोगों के सामने फांसी पर लटकाने का काम उसके अगले दिन भी जारी रहा। 23 अक्टूबर के अंत तक, रोमानियाई अधिकारियों ने अनुमानित 5,000 लोगों को फांसी पर लटकाया था, जिनमें अधिकतर यहूदी लोग थे। अगले दिन, रोमानियाई अधिकारियों ने हिरासत में लिए गए हजारों यहूदियों को पास के डेल्नीक गांव में स्थानांतरित कर दिया। स्थानांतरण करते समय रास्ते में रोमानियाई लोगों ने कुछ यहूदियों को मार डाला। डेल्नीक में, रोमानियाई सैनिकों ने सबसे पहले टैंक विरोधी गड्ढों में कुछ दर्जन यहूदियों को गोली मार दी। फिर उन्होंने बचे हुए यहूदियों को बड़ी इमारतों में कैद कर दिया, जिन्हें खलिहान/बार्न, शेड या गोदाम कहा जाता है। इसके बाद रोमानियाई सैनिकों ने मशीन गनफायर से इन इमारतों को छलनी कर दिया। यह सामूहिक गोलीबारी अगले दिन भी जारी रही। किसी समय पर, रोमानियाई लोगों ने कई इमारतों में आग लगा दी। रोमानियाई सैनिकों ने आग से बचकर निकलने की कोशिश करने वाले सभी लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी।

25 अक्टूबर को, रोमानियाई अधिकारियों ने डेल्नीक के एक इमारत को नष्ट करने और अंदर के लोगों को मारने के लिए विस्फोटकों का इस्तेमाल किया।. एन्टोंनेस्क्यु ने 22 अक्टूबर को हुए विस्फोट की प्रतीकात्मक गूंज के रूप में इस प्रतिशोध आदेश दिया था। डेल्नीक में मारे गए पीड़ितों की सही संख्या अभी तक अज्ञात है। विद्वान लोगों का अनुमान है कि यहां संभवतः लगभग 20,000 लोगों को मारा गया था।  

प्रत्यक्षदर्शियों ने इंगित किया कि रोमानियाई अधिकारियों ने अक्टूबर में डेल्निक में नरसंहार से पहले और उसके दौरान अन्य स्थानों पर भी नरसंहार किया था। लस्टडॉर्फ रोड पर एक युद्ध सामग्री डिपो में, सामूहिक गोलीबारी की कार्रवाई में कई पीड़ित मारे गए थे। अन्य लोगों को तोपखाने के गोदामों में जिंदा जला कर मार दिया था। 

जो यहूदी डेल्निक में हुए नरसंहार में मारे नहीं गए थे, उन्हें ओडेसा में स्लोबिडका के पड़ोस में एक नए बनाए गए यहूदी बस्ती में ले जाया गया। 25 अक्टूबर को वहां कैद किए गए अनुमानित 25,000 यहूदियों में से वे लोगो थे। स्लोबिडका में परिस्थितियाँ बहुत कठोर थी। यहूदियों ने भीड़भाड़, भूख और गंभीर ठंड का अनुभव किया। 

ओडेसा में जर्मन सेनाओं (फोर्स) द्वारा किए गए अत्याचार (अक्टूबर-नवंबर 1941)

ओडेसा में तैनात रोमानियाई सैनिकों के अलावा, जर्मन इन्सत्ज़ग्रुप डी के सोंडेरकोमांडो 11बी ने ओडेसा में सीमित समय के लिए ऑपरेट किया। सोंडेरकोमांडो 11बी 17 अक्टूबर से मध्य नवंबर 1941 तक ओडेसा में ऑपरेट कर रहा था।  23 अक्टूबर को, जर्मन यूनिट ने फोंटान्स्का स्ट्रीट जेल में कैद यहूदियों की अज्ञात संख्या को गोली मार दी। उन्होंने संभावित अक्टूबर के अंत में एक और बड़ा सामूहिक गोलीबारी ऑपरेशन चलाया। नवंबर के मध्य तक, इस यूनिट ने नियमित तौर पर शहर में यहूदियों की खोज करके उन्हें मार डाला।

ऐसा अनुमान है कि सोंडेरकोमांडो 11बी ने ओडेसा में 1,000 से 5,000 यहूदियों की हत्या कर दी।

बोगदानोव्का कैंप तक मौत की यात्रा

अक्टूबर में नरसंहार करने के बाद रोमानियाई अधिकारियों ने ओडेसा में यहूदियों पर अपना हिंसक हमला जारी रखा। मौत की यात्रा 27 अक्टूबर से शुरू हुई, रोमानियाई जेंडार्मेस लोगों ने हजारों यहूदियों के समूहों को ओडेसा से रोमानियाई-स्थापित बोगदानोव्का कैंप तक पैदल मार्च कराया। यह कैंप लगभग 160 किलोमीटर (100 मील दूर) दूर यूक्रेनी गांव बोहदानिव्का में स्थित था। रोमानियाई लोगों ने अगले कुछ हफ्तों में कुल 25,000 से 30,000 यहूदियों को पैदल यात्रा करने के लिए मजबूर किया ऐसा विद्वानों का अनुमान है। 

पैदल यात्रा करते समय, यहूदियों को भोजन और पानी की कमी के साथ-साथ ठंडे तापमान का सामना करना पड़ा था। उन्होंने जेंडार्मेस लोगों से और काफिलों को बचाने में मदद करने वाले स्थानीय पुलिस के सदस्यों से चोरी और हिंसा को सहना पड़ा।  

बोगदानोव्का कैंप में, रोमानियाई अधिकारियों ने बचे हुए यहूदियों को एक बहुत बड़े राज्य के मालिकाना खेत (radhosp) के सुअरबाड़ों और खलिहानों/बार्न में इकठ्ठा किया। उन्होंने ट्रांसनिस्ट्रिया गवर्नरेट के अन्य स्थानों के साथ-साथ बेस्सारबिया और बुकोविना से भी यहूदियों को वहां रखा हुआ था। बोगदानोव्का कैंप में अमानवीय परिस्थितियों के कारण हजारों यहूदियों की भूख और बीमारी से मृत्यु हो गई थी।

21 दिसंबर, 1941 और 1942 के जनवरी मध्य के बीच, बोगदानोव्का में सामूहिक गोलीबारी की कार्रवाई में हजारों यहूदी मारे गए। यह गोलीबारी की कार्रवाई रोमानियाई और जर्मन दोनों प्राधिकरणों के तहत हुई। कुछ निशानेबाज सेल्बस्ट्सचुट्ज़ नामक स्थानीय जातीय जर्मन मिलिशिया यूनिटों के सदस्य थे। ये यूनिट एक विशेष SS यूनिट के वास्तविक अधिकार के तहत ऑपरेट हुआ करती थी। अन्य निशानेबाज रोमानियाई जेंडार्मेस लोगों के अधिकार के तहत काम करने वाली स्वदेशी यूक्रेनी पुलिस यूनिट के सदस्य थे। अपराधियों ने उन लोगों की लाशें जला दीं जिनका उन्होंने नरसंहार किया था। सामूहिक गोलीबारी स्थल पर ले जाने के लिए बहुत कमजोर या बुजुर्ग 2,000 से 5,000 यहूदियों को भी उन्होंने जिंदा जला दिया था। नरसंहार के दौरान यहूदियों की मालिकाना संपत्ति की लूट बड़े पैमाने पर हुई थी। 

ओडेसा से बोगदानोव्का कैंप तक जबरन पैदल मार्च करने वाले लगभग सभी यहूदियों की मृत्यु हो गई या उनकी हत्या कर दी गई थी। 

ओडेसा को “यहूदी मुक्त" बनाना 

अक्टूबर में किए गए नरसंहार और बोगदानोव्का कैंप में जबरन पैदल मार्च के बाद के हफ्तों में रोमानियाई लोगों ने ओडेसा में रहने वाले यहूदियों पर उग्र हिंसा करने के दृच्छिक कृत्यों को जारी रखा। जीवित बचे कुछ लोगों की गवाही के अनुसार, इस अवधि के दौरान रोमानियाई लोगों ने ओडेसा में रहने वाले यहूदियों को अपने कपड़ों पर पीले स्टार बैज पहनना अनिवार्य किया था।  

साल 1941 में दिसंबर के मध्य तक, रोमानियाई अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि ओडेसा में लगभग 44,000 यहूदी रहते थे। दिसंबर के अंत में, रोमानियाई तानाशाह आयन एंटोनस्कु ने फैसला किया कि ओडेसा को यहूदी लोगों से मुक्त करना होगा। वह और अन्य रोमानियाई नेता जूदेव-बोल्शेविज्म में विश्वास करते थे, एक साजिश सिद्धांत जो यहूदियों को साम्यवाद/कम्युनिज्म के लिए दोषी ठहराता था। वे सोवियत यूनियन में यहूदियों को विशेष रूप से खतरनाक दुश्मन मानते थे। साल 1941 में, रोमानियाई लोगों को डर था कि मौका मिलने पर ओडेसा में रहने वाले यहूदी रेड आर्मी (सोवियत सेना) को शहर पर दोबारा कब्जा करने में मदद करेंगे। 

एंटोनेस्कु के आदेश पर कार्रवाई करते हुए, ट्रांसनिस्ट्रिया के गवर्नर घोरघे एलेक्सियानु ने ओडेसा में बचे हुए यहूदियों को ट्रांसनिस्ट्रिया गवर्नरेट के ग्रामीण क्षेत्रों में निर्वासित करने का आदेश जारी किया।

10 जनवरी, 1942 को, रोमानियाई अधिकारियों ने ओडेसा में अभी भी रहने वाले सभी यहूदियों को दो दिनों के भीतर स्लोबोडा यहूदी बस्ती में इकट्ठा होने का आदेश दिया। यहूदी बस्ती/घेट्टो यह ओडेसा से ट्रांसनिस्ट्रिया के अन्य हिस्सों तक, ज्यादातर बेरेज़ोव्का काउंटी (यूक्रेनी में बेरेज़िव्का) तक यहूदियों के निर्वासन के लिए इकठ्ठा होने की और पार करने की जगह बन गया था।  

1942, ओडेसा से ट्रेन द्वारा निर्वासन

रोमानियाई अधिकारियों ने ओडेसा से यहूदियों को ट्रेन द्वारा बेरेज़ोव्का काउंटी में निर्वासित करना शुरू कर दिया, जो ओडेसा से लगभग 90 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। 

रोमानियाई जेंडार्मेस लोगों और कभी-कभी जर्मन गार्डों ने ओडेसा से राउंडअप और निर्वासन कार्य को अंजाम दिया। उन्होंने यहूदियों के समूहों को स्लोबिडका यहूदी बस्ती/घेट्टो से या अन्य इकठ्ठा होने की जगह से एक ट्रेन स्टेशन तक 10 किलोमीटर (6 मील) से अधिक दूर तक पैदल मार्च कराया। वहां, यहूदियों के बड़े समूह थे, कुछ दर्जन से लेकर लगभग दो हजार तक लोग थे, जिन्हें बेरेज़ोव्का शहर की यात्रा के लिए रेलगाड़ियों में भरा गया था। कुछ परिवहन रेलगाड़ियां अन्य गंतव्य स्थानों के लिए रवाना हुई। 

रोमानियाई लोगों ने 1942, जनवरी और फरवरी में ओडेसा से 31,000 से अधिक यहूदियों को निर्वासित कर दिया। तापमान ठंड से जम जाने के काफी नीचे था और स्थितियाँ बहुत घातक थी। ऐसी परिस्थितियों में यहूदियों के निजी सामानों की चोरी होने के कारण उनकी हालत और भी बदतर हो गईं थी, क्यूंकि उन सामानों में उनके बाहरी कपडे भी चोरी हो गए थे।  इसी कारण, निर्वासित लोगों में से एक चौथाई लोगों की यात्रा से पहले या यात्रा के दौरान मौत हो गई। 

ओडेसा से यहूदियों का छोटे छोटे समूहों में निर्वासन करना मार्च से जून महीने तक जारी रहा। अप्रैल 1942 तक, शहर में केवल 701 पंजीकृत यहूदी बचे थे। 10 जून 1942 को स्लोबिडका यहूदी बस्ती को बंद कर दिया गया। निर्वासन की अंतिम रेलगाड़ी 23 जून को ओडेसा से रवाना हुई। 

जातीय जर्मन मिलिशिया यूनिट द्वारा नरसंहार

बेरेज़िव्का में उनके आगमन पर, रोमानियाई जेंडार्मेस लोगों और यूक्रेनी पुलिस ने अधिकांश यहूदी निर्वासित लोगों को बुह नदी के किनारे के गांवों में अस्थायी कैंप की ओर पैदा मार्च कराया। इन गंतव्यों स्थानों तक पहुंचते पहुंचते कई सारे यहूदियों की मृत्यु हो गई थी।

जातीय जर्मन मिलिशिया यूनिट (सेल्ब्स्टस्चुट्ज़) अक्सर इन मार्चों को रोका करते थे। उन्होंने कुछ समय के लिए यहूदियों को कैद कर लिया और उनका बचा हुआ सारा कीमती सामान लूट लिया करते थे।। इसके बाद वे बेरेज़ोव्का काउंटी के आसपास की जगहों पर सामूहिक गोलीबारी की कार्रवाई करके उन्हें मार डाला करते थे।। जातीय जर्मन मिलिशिया यूनिट ने ऐसी दर्जनों नरसंहारों कार्रवाई की थी। वे एक बार में 30 से लेकर 1,000 यहूदियों को मारा करते थे। उनके द्वारा सबसे बड़े पैमाने पर ऑपरेशन 1942 में जनवरी और मार्च के बीच हुआ था। मिलिशिया सदस्यों ने पीड़ितों के शव जला दिए थे।  

1942 में जनवरी और जून के बीच, जातीय जर्मन मिलिशिया यूनिट ने, मुख्य रूप से बेरेज़ोव्का काउंटी में, ओडेसा से रोमानियाई अधिकारियों द्वारा निर्वासित लगभग 33,500 यहूदियों को मार डाला था। 

ओडेसा में बचे हुए यहूदी

साल 1942 में जून के अंत तक, ओडेसा शहर में लगभग कोई भी पंजीकृत यहूदी नहीं बचा था। थोड़े समय बाद रोमानियाई लोगों ने छोटी संख्या में यहूदियों को शहर में लेकर आए, जिनमें अधिकतर कारीगर थे। इन कारीगरों ने सरकारी कार्यशालाओं में जबरन मजदूर के रूप में काम किया। साल 1943 जनवरी में , 54 यहूदी जबरन मजदूर - जिनमें पुरुष, महिलाएं और बच्चे शामिल थे - ओडेसा में रहते थे।  

अनुमानित 1,000 कराटे यहूदी परिवार पूरे रोमानियाई कब्जे के दौरान ओडेसा में खुले तौर पर रहते थे। कराटे यहूदी लोग यहूदी धर्म का एक छोटा संप्रदाय था जिसकी धार्मिक प्रथाएँ पूर्वी यूरोप के अधिकांश यहूदियों से भिन्न थी। नाजियों ने कराटे यहूदी लोगों को तुर्की मूल के लोग मान लिया था, और इसलिए उत्पीड़न या सामूहिक हत्या के लिए उन्हें निशाना नहीं बनाया। ट्रांसनिस्ट्रिया में रोमानियाई अधिकारियों ने जाहिरा तौर पर वही नीति अपनाई।

इसके अतिरक्त, अज्ञात संख्या में यहूदी जो आधिकारिक तौर पर पंजीकृत नहीं थे, ओडेसा में रह गए। ये यहूदी लोग अक्सर छुपे रहते थे या झूठी पहचान के साथ रहते थे। 

ओडेसा में छुपे हुए यहूदी लोग

ओडेसा पर कब्ज़ा करने के दौरान, रोमानियाई लोगों ने शहर के लगभग सभी यहूदियों को मार डाला था या निर्वासित कर दिया था। लेकिन कुछ लोग जो बहुत कम संख्या में थे वे छिपकर बच गए। वेरा बखमुत्सकिया, एक ओडेसा में रहने वाली यहूदी, जो एक गैर-यहूदी पारिवारिक मित्र की मदद से छिपकर बच गई थी, उन्होंने बताया की उसका जीवित रहना कितना अविश्वसनीय था:

हम [यहूदी] बहुत कम बचे थे। बहुत कम। जब रोमानियन लोग वापस चले गए [...] मैं सड़क पर चल रही थी और मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं शहर में एकमात्र यहूदी बची हूं।

बहुत कम संख्या में यहूदी छुपे हुए थे या वे गैर-यहूदी पहचान बनाकर रह रहे थे। शहर में छिपकर निर्वासन करना और संभावित मौत से बचने के प्रयास बहुत कठिन थे और शायद ही कोई इसमें कभी सफल हुआ होगा। बिना किसी की मदद से छिपने का प्रयास करने वाले यहूदियों को बिना पकड़े गए भोजन/खाने और आश्रय/रहने की तलाश करनी पड़ी थी। जिन गैर-यहूदियों ने उनकी मदद करने की कोशिश की, उन्हें बड़े व्यक्तिगत जोखिम का सामना करना पड़ा, साथ ही गुप्त रूप से आश्रय/रहने देना , भोजन/खाना और कपड़े उपलब्ध कराने की वास्तविक कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ा। जब तक कब्जा किया था तब तक छुपे हुए यहूदियों और उनकी मदद करने वाले गैर-यहूदियों दोनों की सार्वजनिक निंदा/सार्वजनिक हत्या होती रही।

भगवान न करे कि किसी को पता चले की में यहूदी हूं [मेरे यहूदी होने के बारे में...] अगर उन्हें पता चलता तो वे तुरंत मेरी सार्वजनिक निंदा/सार्वजनिक हत्या कर देते। … [... लेकिन] वहां [ऐसे भी] लोग थे जिनमें इंसानियत थी, वे बहुत अच्छे थे, जिन्होंने हमारी मदद की।

युद्ध समाप्त होने के दशकों बाद, ओडेसा में यहूदियों की मदद करने वाले दर्जनों गैर-यहूदियों को यद वाशेम द्वारा औपचारिक रूप से "राष्ट्रों के बीच धर्मी" के रूप में उन्हें पहचान/मान्यता दी गई है।

ओडेसा पर रोमानियाई लोगों द्वारा कब्जा समाप्त होने के बाद का समय

साल 1944, मार्च में रोमानियन लोग ट्रांसनिस्ट्रिया से वापस चले गए। उन्होंने जर्मन लोगों के नियंत्रण में इस क्षेत्र को छोड़ दिया। रेड आर्मी (सोवियत सेना) ने साल 1944 में 10 अप्रैल को ओडेसा क्षेत्र जर्मन लोगों से वापस ले लिया। 

दो महीने बाद, सोवियत अधिकारियों ने ओडेसा के निवासियों की पंजीकरण प्रक्रिया शुरू कर दी। यह स्पष्ट हो गया कि कब्जा करने वाले लोगों ने यहूदी समुदाय को नष्ट कर दिया था - साल 1939 में यहूदी लोगों की संख्या लगभग 200,000 थी जो साल 1944 में बस 2,640 इतनी रह गई। 

जैसे ही रेड आर्मी ने ओडेसा क्षेत्र पर विजय प्राप्त कर लिया, सोवियत अधिकारियों ने कब्जा करने वाले लोगों द्वारा किए गए विभिन्न अपराधों की जांच करना शुरू कर दिया। उन्होंने ओडेसा और अन्य जगहों पर यहूदियों के खिलाफ किए गए अपराधों की जांच की। सोवियत अधिकारियों ने पकड़े गए एक्सिस अपराधियों और स्थानीय सहयोगियों के खिलाफ मुकदमों में इस सबूत का इस्तेमाल किया।  

युद्धकालीन तानाशाह आयन एंटोनस्कु के पतन के बाद रोमानिया में प्रमुख अधिकारियों की भी जांच की गई। ट्रांसनिस्ट्रिया के पूर्व गवर्नर, घोरघे एलेक्सियानू को बुखारेस्ट में पीपुल्स ट्रिब्यूनल द्वारा दोषी पाया गया था। ओडेसा में यहूदियों के खिलाफ किए गए अपराधों सहित कई अन्य अपराधों के लिए रोमानियाई लोगों ने उन्हें 1 जून, 1946 को फांसी दे दी। 

ओडेसा में हुए होलोकॉस्ट को याद करना

दूसरा विश्व युद्ध समाप्त होने के अंतिम समय, सोवियत यूनियन में कई समुदायों में रह रहे यहूदियों ने अपने परिवारों और दोस्तों की हत्या को सार्वजनिक रूप से याद करने का प्रयास किया। हालांकि, सोवियत अधिकारी आमतौर पर पीड़ितों के एक विशेष समूह को अलग करने के प्रयासों का विरोध करते थे। जब सोवियत शासन ने मृत्यु हुए लोगों की याद में स्मारक बनाए, तो समर्पण में "शांतिपूर्ण नागरिक," "सोवियत नागरिक," या "सोवियत लोग" जैसे वाक्यांश लिखे गए थे। उस जगह मरे हुए लोगों में यहूदी बहुसंख्यक होने के बावजूद उन्होंने यह लिखा था। इस भाषा ने उस दुखद घटना की पूरी सीमा को छिपा दिया जिसे अब होलोकॉस्ट के नाम से जाना जाता है। फिर भी, कुछ यहूदी समुदाय सोवियत अधिकारियों के साथ संबंधों और अनौपचारिक समझौतों या आदान-प्रदान के कारण स्मारक बनाने में कामयाब रहे। लेकिन ओडेसा में, सोवियत काल के दौरान कई दशकों तक स्मारक बनाने के प्रयास विफल रहे। 

1991 में सोवियत यूनियन के पतन के बाद, स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ और सोवियत काल में स्मारकीकरण पर लगे प्रतिबंध अभी अप्रासंगिक हो गए। इस वजह से होलोकॉस्ट और अन्य सामूहिक अत्याचारों को याद करने के लिए नए अवसर प्रदान हुए। 1990 के दशक के बाद से, यूक्रेन सहित पूरे क्षेत्र में होलोकॉस्ट पीड़ितों के स्मारकों की संख्या बढ़ गई है। 

ओडेसा में और उसके आसपास, कई स्थानों पर होलोकॉस्ट पीड़ितों की स्मृति में स्मारक या पट्टिका पाए जा सकते हैं। इन स्थानों में डेल्नीक, स्लोबिडका और लस्टडॉर्फ रोड पर पूर्व तोपखाने के गोदामों की साइट शामिल है। पूर्व बोगदानोव्का कैंप और सामूहिक हत्या के अन्य स्थलों पर भी स्मारक बनाए गए हैं। साल 2009 में, ओडेसा में, एक होलोकास्ट संग्रहालय खोला गया।

साले 2004 के बाद से, ओडेसा में युद्ध के दौरान यहूदियों की मदद करने वाले लोगों को प्रोखोरोवस्की स्क्वायर पर स्थित "धर्मी लोगों की गली” के रूप में उन्हें पहचान/मान्यता दी गई है। इस स्थान पर पेड़ों की कतार है, और एक पट्टिका में यद वशेम द्वारा "राष्ट्रों के बीच धर्मी" के रूप में सम्मानित लोगों के नाम सूचीबद्ध हैं।

फुटनोट

  1. Footnote reference1.

    सेल्ब्स्ट्सचुट्ज़ (शाब्दिक रूप से  “आत्म-सुरक्षा यूनिट") मिलिशिया यूनिट एक विशेष जर्मन SS गठन (सोनडेरकोमांडो रस्लैंड) द्वारा बनाई गई थी। साल 1942 अगस्त तक, रोमानियाई कब्जे वाले अधिकारियों के साथ एक औपचारिक समझौते के आधार पर, यह SS यूनिट आधिकारिक तौर पर सेल्बस्ट्सचुट्ज़ मिलिशिया के लिए जिम्मेदार थी। इस समझौते से पहले, अधिकार की सीमाएं कम स्थापित थीं, लेकिन यह स्पष्ट था कि व्यवहार में SS ने इन मिलिशिया को नियंत्रित किया था।

  2. Footnote reference2.

    वेरा बखमुत्सकिया के साथ इंटरव्यू, विजुअल हिस्ट्री आर्काइव, USC Shoah Foundation, 17 मई 1998, खंड 54; 23:38.

  3. Footnote reference3.

    वेरा बखमुत्सकिया के साथ इंटरव्यू, विजुअल हिस्ट्री आर्काइव, USC Shoah Foundation, 17 मई 1998, खंड 54; 23:10.

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